मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा
रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।
इस दिशा में डॉ. बुधौलिया ने स्तुत्य कार्य किया। गीता का छंदमय हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करके वह हिंदी साहित्य को दरअसल एक धरोहर सौंप गए।
आज वह हमारे बीच डॉ. बुधोलिया सशरीर भले नहीं हैं, लेकिन उनकी यह अमर कृति योगों युगों तक हिंदी साहित्य के पाठकों को अनुप्राणित करती रहेगी ! उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 18वी कड़ी..
दूसरा अध्याय : सांख्य योग
हे पार्थ जिसे यह ज्ञान हुआ, आत्मा अव्यय है अविनाशी,
वह नित्य अजन्मा है अवध्य, चिरचेतन है वह अविकारी।
ऐसा ज्ञानी क्या कभी किसी को, मार सके यह संभव है,
या मरवायेगा कभी किसी को, यह भी रहा असंभव है।-21
ज्यों जीर्ण-शीर्ण तज वस्त्र मनुज, नूतन परिधान करे धारण,
त्यों आत्म जीर्ण कलेवर तज करता है नूतन देह ग्रहण।-22
क्षेपक :-
यज्ञाहुति में प्राणाहुति हो, या धर्म युद्ध में प्राणर्पित,
अविलम्ब मुक्ति पापों से पा, आत्मा पा जाता उच्चासन।
जीवात्मा परमात्मा दोनों, है एक वृक्ष के दो पक्षी,
खा रहा एक फल तरूवर के, उसको बस लखे अन्य पक्षी।
फँसता जीवात्मा विषयों में, परमात्मा नित निर्लिप्त रहे,
उद्बोधित पर जीवात्मा ले परमात्व तत्व विकसे, उभरे।-22
आत्मा को शस्त्र न काट सके, अरू जला न पाये अग्नि उसे
अरू गला न पाये जल उसको, अरू सुखा न पाये वायु उसे।-23
अर्थात अच्छेद्य रहा आत्मा अदाहय रहा, अक्लेदय रहा,
अशोष्य रहा यह आत्मानित, चिर, अचल, अदोष, परिव्याप्त रहा।-24 क्रमशः…