श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 14वी कड़ी..   

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता  का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।
इस दिशा में डॉ. बुधौलिया ने स्तुत्य कार्य किया। गीता का छंदमय हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करके वह हिंदी साहित्य को दरअसल एक धरोहर सौंप गए।
आज वह हमारे बीच डॉ. बुधोलिया सशरीर भले नहीं हैं, लेकिन उनकी यह अमर कृति योगों युगों तक हिंदी साहित्य के पाठकों को अनुप्राणित करती रहेगी ! उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 14वी कड़ी..   
   
दूसरा अध्याय : सांख्य योग
ये गुरूजन इन्हें न मारूँगा, सुख भोग अर्थ के लिये कभी,हितकारी होगा भीख मांग, जीवन यापन मैं करूँ कही।

माना कि अर्थ लोलुप हैं ये फिर भी वरिष्ठ सम्माननीय,

इनकी हत्या से प्राप्त भोग, है रूधिर सना अति निन्दनीय।-5

 

क्या रहा श्रेष्ठ न ज्ञात मुझे, विजयी होना या विजित भला,

हम उनको जीतेंगे अथवा वे हमको यह अज्ञात रहा।

जिनका वध कर या जीत जिन्हें, जीना भी नहीं चाहते हम,

वे सम्मुख खड़े हुए लड़ने, कुरूकुल से परिपूरित यह रना-6

 

अपहत कायरता से भगवन, व्यामोहित मैं भूला स्वधर्म,

शरणागत हूँ अरू पूछ रहा,श्रेयस्कर मुझको कौन कर्म।

मेरा हित निहित उचित जो हो वह निश्चित मुझसे प्रभु कहिये

मैं शिष्य आपका शरणागत, मुझ पर प्रभु सहज कृपा करिये।-7

 

ऐसा न उपाय मुझे दीखे, जो शोक हटा पाये मेरा,

शोषित हो रहीं इन्द्रियाँ सब, इसका ऐसा दुष्कर घेरा।

निष्कंटक भू का राज्य मिले, या आधिपत्य स्वर्गिक सुख का,

पर व्याप रहा जो शोक मुझे, दुष्वार निवारण प्रभु उसका।-8   क्रमशः…