श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 11वी कड़ी..   

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता  का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।
इस दिशा में डॉ. बुधौलिया ने स्तुत्य कार्य किया। गीता का छंदमय हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करके वह हिंदी साहित्य को दरअसल एक धरोहर सौंप गए।
आज वह हमारे बीच डॉ. बुधोलिया सशरीर भले नहीं हैं, लेकिन उनकी यह अमर कृति योगों युगों तक हिंदी साहित्य के पाठकों को अनुप्राणित करती रहेगी ! उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 11 वी कड़ी..   
   
पहला अध्याय : अर्जुन विषाद योग
जब बढ़े वर्णसंकर कुल का, होने लगता है अद्यः पतन,पातक कुल को कुलघाती को, मिलती रौरव की दाह अगन,

पिण्डोदक प्राप्त नहीं होता, पितरों को, वे भी गिर जाते,

दुर्गतिमय रही योनियाँ जो, उनसे वे मुक्ति नहीं पाते।-41

 

कुलघाती वर्णसंकरों से, सारा कुल भ्रष्ट-नष्ट होता,

होता विनिष्ट कुलधर्म सभी, अरू जाति धर्म भी मिट जाता।

दोषों से वर्णसंकरों के धार्मिक मर्यादा मिट जाती,

महिमा मिटती सत मूल्यों की, ऐसे अधर्मता छा जाती।-42

 

वर्णाश्रम धर्म न रह जाता, होता कुल धर्म विनष्ट जहाँ,

वे मनुज पातकी वहाँ बसे है नित्य नरक का वास जहाँ।

उद्वार न उनका हो पाता, गुरू परम्परा से सुना यही

बढ़ता ही जाये अधः पतन क्या पाप पाप से कटे कभी।-43    क्रमशः…