रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।
लेकिन वह जो हो आत्मलीन, आनन्दित अन्तस में रहता,
पाता है आत्म-प्रकाश सदा, संतुष्ट पूर्ण सुखमय रहता।
कर्तव्य न कोई शेष उसे, उसको फिर वेद-विधान नहीं,
मति का शोधन हो जाने पर, बचता क्या कोई काम कही।-17
निस्वार्थ स्वधर्म हुआ उसको, जिसको स्वरूप का ज्ञान हुआ,
देवार्पित सब कर्तव्य रहे, निःशेष जगत-व्यवहार हुआ।
वह कर्म न जो करना चाहे, उसका न रहे उसको कारण,
वह नहीं अन्य प्राणी की फिर, कर पाता आश्रयता धारण।-18
इसलिये समझ कर्तव्य स्वयं, हो निरासक्त निज कर्म करो,
परिणाम कर्म का क्या होगा, इस पर मत सोच विचार करो।
प्रभु के हित जो भी कर्म किया, वह फलासक्ति से रहित किया,
पर परम लक्ष्य की प्राप्ति हुई, जब निर्विकार यह कर्म किया।-19
जनकादिप नृप कृतकृत्य हुये, सब नियत कर्म सम्पादित कर,
राजर्षि आत्मज्ञानी थे वे उनको न रहे वे आवश्यक।
इसलिए लोक संग्रह के हित, तू भी स्वधर्म का पालन कर,
जो कर्म पूर्ण करना तुझको, उसकी मर्यादा धारण कर।-20 क्रमशः…