रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।शास्त्रों का मान न जो करता, शंकालु मनुज फिर फिर गिरता।
अज्ञानी श्रद्धाहीन मनुज, शंकालु न लोक सुधार सके,
सुख प्राप्त नहीं होता उसको, अपना परलोक बिगाड़ चले।-40
इसलिये धनंजय वह ज्ञानी, कर्मो के फल जिसने त्यागे,
संशय का जिसने नाश किया, जिसका विवेक अविचल जागे।
वह आत्म-परायण पुरुष रहा, उसको न बांधते कर्म कभी,
वह कर्म योगमय मुक्त रहा यज्ञार्पित उसके कर्म सभी।-41
अतएव भरतवंशी अर्जुन अपना अज्ञान- जन्य संशय,
तू दूर हटा, उच्छेदन कर, ले शस्त्र ज्ञान को हो निर्भय।
तू आत्मरूप में स्थित हो, संधान योग का कर अर्जुन,
उठ जाग खड़ा हो जा लड़ने कर युद्ध सुदृढ़ कर अपना मन।-42
॥ इति अध्याय चतुर्थ ॥