⚡संपादकीय⚡
” राकेश प्रजापति “
रिश्तों पर राजनीति और मर्यादा का पतन….
हाल ही में कैलाश विजयवर्गीय और विजय शाह जैसे वरिष्ठ नेताओं के बयानों ने एक बार फिर भारतीय राजनीति में गिरते हुए नैतिक मानदंडों को उजागर किया है। एक तरफ विजय शाह “देश की बेटी” पर की गई अपनी टिप्पणी के लिए माफी मांगते नजर आए, तो दूसरी तरफ कैलाश विजयवर्गीय ने “रिश्तों की पवित्रता” पर सफाई दी। ये बयान सिर्फ व्यक्तिगत नहीं हैं, बल्कि उस राजनीतिक संस्कृति का प्रतीक हैं, जहाँ सत्ता में बैठे लोग अपने पद की गरिमा और सामाजिक मर्यादा को ताक पर रखकर बयान देते हैं।
विजय शाह का यह कहना कि “हम हर बहन-बेटी को सम्मान देते हैं” तब खोखला लगता है जब उनका पिछला बयान सामने आता है। यह केवल एक गलती नहीं, बल्कि एक पैटर्न है जिसमें राजनीतिज्ञ अपनी सुविधा के अनुसार बयान बदलते हैं। जब उन्हें अपनी गलती का एहसास होता है, या कहें कि जब उन पर राजनीतिक दबाव बनता है, तो वे माफी मांगते हैं। लेकिन क्या यह माफी पर्याप्त है? क्या यह उस क्षति की भरपाई कर सकती है जो उनके शब्दों से हुई है?
ठीक इसी तरह, कैलाश विजयवर्गीय का “रिश्तों में सियासत” का बयान भी सवालों के घेरे में है। वे कहते हैं कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के बीच के रिश्ते की पवित्रता पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। लेकिन विडंबना यह है कि यही विजयवर्गीय, अतीत में कई बार अपने राजनीतिक विरोधियों पर व्यक्तिगत हमले करते रहे हैं। वे जब स्वयं सार्वजनिक जीवन में व्यक्तिगत रिश्तों और परिवारों को लेकर टिप्पणी करते रहे हैं, तो आज उनकी यह सफाई कितनी विश्वसनीय मानी जाए ?
यह संपादकीय न केवल इन बयानों की आलोचना करता है, बल्कि भारतीय राजनीति के उस गहरे संकट की ओर भी ध्यान खींचता है, जहाँ “नैतिकता” और “मर्यादा” जैसे शब्द केवल भाषणों तक सीमित रह गए हैं। राजनीति, जो कभी समाज को दिशा देती थी, आज व्यक्तिगत कीचड़ उछालने का अखाड़ा बन गई है। यह समय है जब न केवल नेताओं को, बल्कि हम सबको भी सोचना होगा कि क्या हम ऐसी राजनीति को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं जहाँ रिश्तों की पवित्रता और समाज की मर्यादा को सत्ता के लिए बलि चढ़ा दिया जाता है?
अगर राजनीति को सम्मानजनक बनाना है तो नेताओं को अपने शब्दों के प्रति जिम्मेदार होना होगा। माफी केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि अपने आचरण में सुधार का संकल्प होनी चाहिए। जब तक ऐसा नहीं होगा, तब तक विजय शाह और कैलाश विजयवर्गीय जैसे नेताओं के बयान केवल एक नए विवाद को जन्म देंगे, और समाज में मर्यादा का पतन जारी रहेगा।