श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 106 वी कड़ी.. 

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता  का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।
इस दिशा में डॉ. बुधौलिया ने स्तुत्य कार्य किया। गीता का छंदमय हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करके वह हिंदी साहित्य को दरअसल एक धरोहर सौंप गए।
आज वह हमारे बीच डॉ. बुधोलिया सशरीर भले नहीं हैं, लेकिन उनकी यह अमर कृति योगों युगों तक हिंदी साहित्य के पाठकों को अनुप्राणित करती रहेगी ! उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 106 वी कड़ी.. 

तेरहवाँ अध्याय : प्रकति-पुरुष-विवेक योग

इस तरह क्षेत्र याने शरीर, अरू ज्ञान ज्ञेय क्या बतलाया,

जो रहा जानने योग्य तत्व, उसके स्वरूप को समझाया।

संक्षेप सार इनका अर्जुन, जो भक्त रहे वे जान सके,

मेरे स्वरूप को पा जावे, जो भक्त मुझे पहिचान सके।-18

 

निर्मित है क्षेत्र प्रकृति द्वारा, जीवात्मा जिसमें बद्ध रहा,

वह देह-पुरुष ही भोक्ता है क्षेत्रज्ञ एक अतिरिक्त रहा।

जीवात्मा परमात्मा दोनों, ईश्वर के भिन्न प्रकाश रहे,

वे हैं अनादि उनके विकार रे प्रकृति गुणों से रहे जुड़े।-19

 

इन्द्रियाँ कि देह वह जीवों की, करती प्रकृति अभिव्यक्त सदा,

वह हेतु कार्य कारण की है, सुख दुःख का भोक्ता देह रहा।

जीवात्मा है आनन्द रूप, लेकिन सुख-दुख का हेतु बने,

कर्मानुसार जो योनी मिली, उस जैसे वह व्यवहार करें।-20

 

त्रिगुणात्मक रही प्रकृति अर्जुन, जीवात्मा जिसमें वास करें,

जो कर्म करे जो इच्छायें, वैसी ही इसको योनि मिले।

वह भोग भोगता अपना ही, अपने कर्मों का फल पाता,

उत्तम या अधम योनियों का, वह ही होता है निर्माता।-21

 

जीवात्मा के संग हर तन में, भोक्ता है एक परात्पर भी,

जो सबका परम पिता साक्षी, ईश्वर जो अनुमति दाता भी।

जीवात्मा से जो भिन्न रहा, माया के परे कि अनुमन्ता,

हर आत्मा के साथ रहा, जीवात्मा पालित वह भर्ता।-22

माया परमात्मा जीवात्मा, तीनों का क्या संबंध रहा,

इसका विमल ज्ञान जिसको, परिवेश मुक्ति का प्राप्त रहा।

भव बन्धन में जीवात्मा का, हो गया पतन क्यों जब जाने,

वह मार्ग मुक्ति का पा जाता, अपना स्वरूप जब पहिचाने।-23   क्रमशः…