
अठारहवाँ अध्याय : मोक्ष-सन्यास योग
तू भक्तिभावना भावित हो, मेरा पूजन अरू वन्दन कर,
मेरी गीता का सार रहा, तू कर्म समर्पित मुझको कर।
तू मेरा प्रियतम सखा रहा, यह सत्य प्रतिज्ञा है मेरी,
तू पूर्णकाम हो जायेगा, तू प्राप्त करेगा मुझको ही।-65
दे त्याग सभी धर्मों को, तू गह ले तू मात्र शरण मेरी,
मैं सब पापों को हर लूँगा, कर दूँगा दूर विपदा तेरी।
तू शोक न कर उद्विग्न न हो, उद्धार करूँगा मैं तेरा
हे अर्जुन तू प्रिय सखा रहा, मैं बना सारथी हूँ तेरा।-66
अति गोपनीय यह ज्ञान परम, तपरहित पुरुष से यह न कहे,
यह कहे न कभी अनिच्छुक को, यह नहीं अभक्त से कभी कहें।
मुझसे जो द्वेष करे अर्जुन, उसको न सुनाये इसे कभी,
जो भक्ति योग में लगे हुये, वे ही सुनने के पात्र सही।-67
गीता के परम रहस्यों को भक्तों को जो समझायेगा
वह भक्ति योग में पारंगत, यह वचन रहा, हो जायेगा।
पायेगा मेरा धाम परम, पायेगा मुक्ति लाभ अर्जुन,
भगवान भक्त के वश में हैं, पर मिले न वे श्रद्धा के बिन।-68
गीता का जो गुणगान करे, अतिशय प्रिय वह सेवक मेरा,
उससे न अधिक प्रिय है कोई, होगा न कभी यह मत मेरा।-69 क्रमशः ….