श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 141 वी कड़ी.. 

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता  का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।
इस दिशा में डॉ. बुधौलिया ने स्तुत्य कार्य किया। गीता का छंदमय हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करके वह हिंदी साहित्य को दरअसल एक धरोहर सौंप गए।
आज वह हमारे बीच डॉ. बुधोलिया सशरीर भले नहीं हैं, लेकिन उनकी यह अमर कृति योगों युगों तक हिंदी साहित्य के पाठकों को अनुप्राणित करती रहेगी ! उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 141 वी कड़ी.. 

अठारहवाँ अध्याय : मोक्ष-सन्यास योग

 

हे अर्जुन मोह ग्रसित होकर, तू भले उपेक्षा कर मेरी,

आज्ञा का पालन नहीं करे, मत करे कर्म मति का मेरी।

पर कर्म वही तुझको बरबस, हे पार्थ स्वयं करना होगा,

तेरा स्वभाव जैसा उसके, अनुसार तुझे चलना होगा।-60

 

हे अर्जुन हृदयों में सबके, बैठा होता अन्तर्यामी,

जग जीवों का जीवन सारा, वह चला रहा अन्तर्यामी।

वह देह यन्त्र का चालक बन, जग जीव मात्र को घुमा रहा,

माया की उसकी शक्ति रही जिससे वह सबको चला रहा।-61

 

हे अर्जुन उस परमेश्वर की, शरणागत हो तू सभी तरह,

उसकी ही कृपा प्राप्त कर तू, यश पायेगा तू सभी तरह।

पायेगा मन की शान्ति परम, तू परमधाम भी पायेगा,

जो दिव्य सनातन शाश्वत है, वह तुझे प्राप्त हो जायेगा।-62

 

यह ज्ञान रहा अति गोपनीय, मैंने जो तेरे लिये कहा,

यह गीता शास्त्र सुना तूने, तुझ पर इसका क्या असर रहा।

तू पूर्ण रूप से सोच-समझ, फिर अपना निर्णय कर अर्जुन,

जैसे इच्छा हो वैसा कर, वह कर जो कहता तेरा मन।-63

 

अति गोपनीय से भी बढ़कर, जो गोपनीय मम सार वचन,

तेरे प्रति फिर आवृत्ति करता, दे ध्यान उन्हें तू फिर से सुन।

तु मुझको है अतिशय प्यारा, इसलिये चाहता हित तेरा,

मेरा नित चिन्तन मनन रहे, कल्याण सदा होगा तेरा।-64    क्रमशः ….