‘गीता ज्ञान प्रभा ‘ धारावाहिक 263 ..

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘गीताज्ञानप्रभा’ ग्रंथ एक अमूल्य ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा ज्ञानेश्वरीजी महाराज रचित ज्ञानेश्वरी गीता का भावानुवाद किया है, श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को गीता ज्ञान प्रभा में 2868 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है।
उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला ‘गीता ज्ञान प्रभा‘ धारावाहिक की 263 वी कड़ी..                      अष्टादशोऽध्यायः- ‘मोक्ष सन्यास योग’
‘निष्कर्ष योग’ समस्त अध्यायों का सार संग्रह । मोक्ष के उपायभूत सांख्ययोग (सन्यास) कर्मयोग (त्याग) का अंग प्रत्यंगों सहित वर्णन ।

श्लोक  (७३)

अर्जुन उवाच:-

अर्जुन ने कहा कि हे अच्युत, यह कृपा कि मेरा मोह मिटा,

मेरी सुधि प्राप्त हुई मुझको, मेरा सारा सन्देह मिटा,

संशय मेरा हो गया दूर, मुझमें भगवन दृढ़ता आई,

आज्ञा दें पालूँगा उसको, प्रभु मैंने शरणागति पाई ।

 

हैं आप स्वयं परमेश्वर प्रभु, यह भली भांति मैं जान गया,

यह कृपा स्वयं आपने की भगवन, भ्रम मिटा मोह सब दूर हुआ,

उपकार किया उपदेश दिया, मैं विस्मृति से बाहर आया,

शरणागत हूँ आज्ञा दें प्रभु, इस सिर पर रखें सदा छाया ।

 

अपना नियत कर्म यह मुझको, बढ़कर पूरा करना है,

जैसी प्रभु की इच्छा होगी, वैसा मुझको चलना है,

होना है सब आप स्वयं ही, मैं तो बस उपकरण रहा,

माध्यम हूँ तेरी आज्ञा का, यह सब तेरा कार्य रहा ।

 

पूरा करना मुझे प्रयोजन, जो प्रभु चाह रहा मुझसे,

हृषीकेश हे अन्तर्यामी, प्रेरित हूँ तेरी इच्छा से,

तूने भेजा है धरती पर, हो पूरी तेरी हर इच्छा,

हो आज्ञा वहीं करूँगा मैं, है लक्ष्य यही इस जीवन का ।

 

अज्ञान जनित अब मोह नहीं, जागा है ज्ञान-प्रकाश दिव्य,

प्रत्यक्ष हो गया है भगवन आपका स्वरुप समग्र दिव्य,

कुछ भी अज्ञात नहीं मुझको, ऐश्वर्य, प्रभाव गुण ज्ञात हुए,

कर्तव्य अशेष हुए मेरे, लीला स्वरुप हैं कृत्य बचे ।

 

प्रत्यक्ष आपको देख रहा, कृतकृत्य हुआ हूँ मैं भगवन,

क्या वहाँ अँधेरा ठहरेगा, हो जहाँ विभाषित दिव्य भुवन,

पाया प्रसादवत आत्म बोध, कर्त्ता न रहा, अनुचर हूँ मैं,

तुझ परमपिता का अंशी हूँ, आज्ञा दे प्रभु सेवक हूँ मैं। क्रमशः…