बीते दिनों सांवरी वनपरिक्षेत्र के आमले ने अबैध रूप से सागौन के 18 लट्ठो के साथ रोहना निवासी एक आरोपी को पकड़ा ! इस कार्यवाही को मिडिया के माध्यम से जोर-शोर के साथ प्रचारित प्रसारित कर अपनी लापरवाही पर पर्दा डालने का काम बड़ी ही होशियारी के साथ किया गया खैर ..! परन्तु सप्ताह भर बीत जाने के बाद भी न तो अधिकारी आरोपी से कुछ भी पता नही कर पाए की ये सागौन के लट्ठे कहाँ से काटे गए है ? इस गिरोह में कितने लोग जिले के वनांचलों में कहाँ-कहाँ सक्रीय है ? यह सागौन के वृक्ष किस अनुविभाग की बीट के कक्ष क्रमांक से क़त्ल किए गए है ..
मजे की बात तो यह है की पश्चिम वन मण्डल के वरिष्ठ अधिकारी भी इस मामले पर मौन साधे हुए है, उन्होंने ने भी जिम्मेदार अधिकारीयों को तलबकर यह पूछने की जहमत नहीं उठाई की आपके रहते खुलेआम इमारती लकड़ियों की तस्करी कैसे हो रही है और अब तक वन तस्करों के गिरोह की ताजा स्थित क्या है ? फिल्ड पर मैदानी अमला क्या कर रहा है ? अनुविभाग के वरिष्ठ अधिकारीयों ने इस मामले पर आज दिनांक तक कोई कार्यवाही इसलिए नही की क्योंकि वे खुद फिल्ड पर जाते ही नही है , इसका फायद उठा सावरी वन परिक्षेत्र का मैदानी अमला भी फिल्ड से नदारद रहता है , बीटगार्ड , नाकेदार उपवन क्षेत्रपाल के घरों में ताले लटके रहते है , ये सभी बरसात में चैन की नींद छिंदवाड़ा में अपने धरों पर आराम करते मिल जाएँगे !
मामला तो तब और संगीन हो जाता है कि पकड़ाई गई 18 नग सागौन के लट्ठों की कीमत मात्र 90 हजार विभाग के निकृष्ट अधिकारीयों ने आंकी ? यह बात किसी भी समझदार लोगों के गले से नही उतर रही है ! जो भी सुनता है उसकी जुवान से यही निकलता है की मामू खेला हो गया …!
अब सवाल उठता है की इस पूरे खेल में जिसकी जितनी भागेदारी , उसकी उतनी हिस्सेदारी कहीं इस फार्मूले पर तो विभाग में बंदरबांट नही हो रही है ? अगर ऐसा हो रहा है तो जिले की वन सम्पदा का भगवान् ही मालिक है ! वह दिन दूर नही जब जिले से वनों का विनाश हो जाएगा और पर्यावरणविद अपनी संतति को ड्राइंग रूम में लगे वनों के चित्र दिखाकर कहेंगे ऐसे ही वन और वन्य प्राणी हमारे जिले में भी पाए जाते थे, जिम्मेदार लोगो के निकम्मेपन और हमारी उदासीनता आने बाली नस्ले हमें कभी माफ़ नहीं करेंगी ..?