⚡संपादकीय⚡
राकेश प्रजापति ” ख़बरद्वार “
73 दिन से लापता बेटियाँ और सोया हुआ तंत्र – यह न्याय है या मज़ाक ?
छिंदवाड़ा जिले के चांदामेटा से ग़ायब हुई अनुसूचित जाति की दो नाबालिग बेटियाँ—आराधना और अनवी वर्मा (परिवर्तित नाम ) का 73 दिन बाद भी कोई सुराग नहीं। सवाल यह है कि जिन बेटियों को स्कूल जाते वक्त सुरक्षा की गारंटी मिलनी चाहिए थी, वे कहाँ ग़ायब हो गईं और प्रशासन क्यों हाथ पर हाथ धरे बैठा है ?
यह सिर्फ़ एक परिवार का दुःख नहीं, बल्कि पूरे बहुजन समाज की अस्मिता और सुरक्षा पर सीधा हमला है। आज़ाद समाज पार्टी ने ठीक कहा है कि अगर यह मामला किसी प्रभावशाली वर्ग का होता, तो पुलिस-प्रशासन दिन-रात एक कर देता। लेकिन यहाँ ? 73 दिन बीत गए और न जांच तेज़ हुई, न जिम्मेदारों पर कार्रवाई।
कुंभकरण की नींद में प्रशासन– यह वही तंत्र है, जो जनता के टैक्स पर पलता है, जनता की सुरक्षा का दावा करता है, और ज़रा-सा विरोध होते ही डंडा चलाने में माहिर है। लेकिन जब बात बहुजन समाज की बेटियों की आती है, तो यही तंत्र कुंभकरण की नींद में सो जाता है। कागज़ों में “जाँच” और “प्रक्रिया” चलते रहते हैं, पर ज़मीन पर नतीजा शून्य।
जातिगत भेदभाव की गंध…
यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या इस लापरवाही के पीछे जातिगत भेदभाव छुपा है ? संविधान ने समानता और न्याय का वादा किया था, लेकिन हकीकत यह है कि बहुजन समाज की बेटियों के लिए न्याय आज भी ‘मृगतृष्णा’ बना हुआ है।
एनसीआरबी की भयावह तस्वीर..
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट बताती है कि मध्यप्रदेश आदिवासी व दलित बहुल जिलों में हर साल हज़ारों नाबालिग लड़कियाँ ग़ायब हो रही हैं। इनमें से बड़ी संख्या आज भी बरामद नहीं हो पाती। यह आँकड़े कोई कागज़ी खेल नहीं, बल्कि उस भयावह सच्चाई का आईना हैं जहाँ व्यवस्था बेटियों की सुरक्षा देने में नाकाम है।
अब चुप्पी नहीं चलेगी ?
आजाद समाज पार्टी ने साफ़ चेतावनी दी है कि अगर 15 दिन में बेटियों की बरामदगी और दोषियों पर कार्रवाई नहीं हुई, तो सड़क से लेकर कलेक्टर और एसपी दफ़्तर तक घेराव होगा। और इस आक्रोश की पूरी ज़िम्मेदारी सत्ता और प्रशासन की होगी।
👉 यह मामला प्रशासन की “नाकामी” से आगे बढ़कर अब “जनता के विश्वास पर हमला” बन चुका है। अगर यह तंत्र समय रहते नहीं चेता, तो बहुजन समाज की परिकल्पना अधूरी ही नहीं, असंभव हो जाएगी।