विजयवर्गीय का बयान – सत्ता की विकृत मानसिकता का आईना

आज की बात ..

 टिप्पणी : राकेश प्रजापति

क्या ‘बेटियों की सुरक्षा’ अब मंत्री की अनुमति से तय होगी ?

कैलाश विजयवर्गीय का बयान — सत्ता की विकृत मानसिकता का आईना

इंदौर में ऑस्ट्रेलियाई महिला क्रिकेटर्स से छेड़छाड़ की शर्मनाक घटना के बाद प्रदेश के वरिष्ठ मंत्री कैलाश विजयवर्गीय का बयान सुनकर यह सवाल उठना लाजिमी है —
क्या अब हर बेटी को घर से निकलने से पहले सरकार को “बता” कर जाना पड़ेगा ?

मंत्री जी ने कहा — “अगर खिलाड़ी घूमने जाएं तो लोकल प्रशासन को बताएं।”
कितनी विडंबना है कि घटना में दोषियों से सवाल करने के बजाय मंत्री महोदय पीड़िताओं को ही सीख दे रहे हैं !
यह बयान न केवल असंवेदनशील है बल्कि यह साबित करता है कि सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग महिला सुरक्षा को लेकर अब भी गहराई से बेखबर हैं।

यह पहला विवाद नहीं, विकृत सोच का सिलसिला है

कैलाश विजयवर्गीय का यह कोई पहला विवादित बयान नहीं है।
पूर्व में भी उन्होंने महिलाओं की वेशभूषा और चाल-ढाल पर टिप्पणी करते हुए कहा था —
“संस्कारी महिला वही होती है जो मर्यादा में रहे।”
यह बयान आज भी उनकी स्त्री-विरोधी मानसिकता का प्रतीक है।
दरअसल, यह मानसिकता महिलाओं को स्वतंत्र नागरिक नहीं, बल्कि नियंत्रण योग्य प्राणी मानती है —
जिनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी समाज नहीं, बल्कि खुद महिला की “मर्यादा” पर डाल दी जाती है।

जब सत्ता पीड़िता पर सवाल उठाए

क्या यह शर्मनाक नहीं कि मंत्री जी के बयान में अपराधियों के लिए एक शब्द नहीं,
बल्कि पीड़ितों को ही “प्रोटोकॉल फॉलो” करने की सलाह दी जा रही है ?
यानी अगर किसी महिला से छेड़छाड़ हो जाए, तो गलती उसकी है कि उसने प्रशासन को बताया नहीं !
ऐसी सोच यह दर्शाती है कि सत्ताधारी वर्ग की संवेदनाएं अब राजनीतिक बयानबाजी में दबकर मर चुकी हैं।

इंदौर की चमक के पीछे असुरक्षा की परछाई

इंदौर आज स्मार्ट सिटी कहलाता है, लेकिन महिलाओं की सुरक्षा को लेकर हालात अंधेरे युग जैसे हैं।
महिला खिलाड़ियों तक के साथ दुर्व्यवहार होने लगे, और सत्ता का प्रतिनिधि उस पर “अजीब सलाह” दे,
तो यह समाज नहीं, शासन का दिवालियापन है।

समीक्षा : समाज की चुप्पी ही सबसे बड़ा खतरा

कैलाश विजयवर्गीय का बयान केवल विवाद नहीं, बल्कि विचार की विकृति है।
आज जरुरत इस बात की है कि जनता ऐसे “संस्कारों” के नाम पर फैलाए जा रहे पाखंड को नकारे।
महिलाओं की गरिमा की रक्षा केवल कानूनों से नहीं, बल्कि सोच में सुधार से होगी।
और जब सोच सत्ता की ऊँचाइयों पर बैठकर ऐसी बात कहे — तो यह समाज के लिए चेतावनी है।

अंत में सवाल सीधा है, मंत्री जी —

क्या अब हर बेटी को बाहर निकलने से पहले आपको “बता” कर जाना पड़ेगा,
या फिर सरकार यह स्वीकार करे कि महिलाओं की सुरक्षा उसके नियंत्रण से बाहर हो चुकी है ?