वन विभाग की नाक के नीचे लाखों का फर्जीवाड़ा

नाकेदार शाहिद खान निलंबित, लेकिन असली सवाल—वरिष्ठ अधिकारी क्या कर रहे थे ?

छिंदवाड़ा // वन विभाग के पश्चिम वनमंडल में हुए लाखों रुपये के फर्जी बिल भुगतान घोटाले ने विभाग की व्यवस्थाओं की पोल खोलकर रख दी है। रेंज स्तर पर लंबे समय से पदस्थ नाकेदार शाहिद खान ने भुगतान प्रक्रिया में हेरफेर कर बड़ी राशि का दुरुपयोग किया, जिसके चलते विभाग ने उसे निलंबित कर दिया है। लेकिन सवाल सिर्फ एक कर्मचारी पर नहीं, पूरे विभाग में फैले निकम्मेपन, मिलीभगत और जिम्मेदारीहीन कार्यशैली पर है।

“एक कर्मचारी इतना बड़ा खेल अकेले नहीं खेल सकता” – विभाग में चर्चा

यह कोई साधारण वित्तीय गलती नहीं, बल्कि संगठित फर्जीवाड़ा था। भुगतान की पूरी प्रक्रिया फ़ाइल, नोटिंग, प्रस्ताव और डिजिटल एंट्री की मंजूरी पर निर्भर होती है। ऐसे में सवाल उठता है—

जब भुगतान संबंधित सभी फाइलें रेंजर और एसडीओ की टेबल से होकर गुजरती हैं,
तो इन्हें इसके बारे में पता क्यों नहीं चला ?

वरिष्ठ अधिकारियों की उदासीनता और नाकामी उजागर

कई वर्ष से एक ही पद पर जमे रेंजरों और एसडीओ की बेखबर भूमिका विभाग में खूब सवाल खड़े कर रही है।
विभागीय सूत्रों के अनुसार —

  • इन अधिकारियों का ध्यान मैदान में वन सुरक्षा से अधिक दफ्तर की सेटिंग और कमीशन पर केंद्रित रहता है।

  • अधीनस्थ कर्मचारी मौके का फायदा उठाकर “फाइलों से ही जंगल बेचने” का खेल खेल जाते हैं।

विभाग में यह भी चर्चा है कि—
अनुभव कम होने के बावजूद अधिकारी स्वयं को सर्वज्ञ समझते हैं, लेकिन वास्तविक प्रबंधन व निगरानी शून्य है।
इस निकम्मेपन और बेरुखी ने ही नाकेदार को वर्षों तक मनमर्जी से भुगतान करने का खुला लाइसेंस दिया।

डेस्क पर बैठे-बैठे जंगल और पैसा दोनों गायब

मामले में सामने आई खबरों के मुताबिक नाकेदार ने फर्जी बिल, फर्जी आपूर्ति विवरण और फर्जी हस्ताक्षर तक का उपयोग किया।
यानी मामला:

  • सिर्फ घोटाला नहीं

  • विभागीय सिस्टम की नाकामी का प्रमाण है।

कई और के फंसने की संभावना ..

मामले की गंभीरता को देखते हुए भोपाल से विशेष जांच दल के छिंदवाड़ा पहुंचने की पुष्टि हुई है।
यह जांच केवल फर्जी भुगतान करने वाले नाकेदार तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि —

  • रेंजर

  • एसडीओ

  • अकाउंट सेक्शन

  • और बिल क्लियरेंस में जुड़े सभी व्यक्तियों की भूमिका की स्क्रीनिंग होगी। विभागीय जानकारों के अनुसार —

“अगर जांच निष्पक्ष हुई तो कई नाम सामने आ सकते हैं।”

स्थानीय समुदाय की नाराज़गी : वन क्षेत्र की सुरक्षा और विकास के नाम पर आने वाला पैसा कागज़ी बिलों में उड़ रहा है
जबकि रेंज में:

  • वन संरक्षित क्षेत्र घट रहा है

  • आदिवासी पट्टे की फाइलें रुकी पड़ी हैं

  • और वन अधिकार दावे धूल खा रहे हैं।

जनता का सवाल सरल है —
जंगल बचाने वाले खुद जंगल खा रहे हैं, तो भरोसा कहाँ करें ?

नकदर शाहिद खान का निलंबन सिर्फ पहला कदम है।
जब तक:

  • वर्षों से जमे अफसरों का स्थानांतरण,

  • गैर जिम्मेदार अधिकारियों पर शिस्त कार्रवाई,

  • और विभाग की भुगतान प्रणाली में पारदर्शिता लागू नहीं होती,

तब तक यह घोटाला एक उदाहरण नहीं, एक संकेत है कि सिस्टम बीमार है और उपचार तत्काल आवश्यक है।