
अठारहवाँ अध्याय : मोक्ष-सन्यास योग
गुरू व्यास देव की कृपा रही, सामर्थ्य मिला अवसर पाया,
अर्जुन के प्रति जो कहा गया, वह मैंने अविकल सुन पाया।
श्रीकृष्ण परम योगेश्वर की, साक्षात सुनी मैंने वाणी,
व्याख्या योगो की गोपनीय-सुन मुक्ति प्राप्त करता प्राणी।-75
भगवान कृष्ण अरू अर्जुन के, राजन अदभुत संवाद सुने,
सुधि करता उनकी बार बार, मन में आनंद अमित उपजे।
हर्षित होता हूँ रोमांचित क्षण प्रतिक्षण उसकी सुधि आती,
अन्तस्तल आलोकित होता, अति दिव्य छटा सी छा जाती।-76
भगवान कृष्ण का दिव्य रूप, नयनों में भरता है ललकन,
उसकी मैं पुनि-पुनि सुधि करता, राजन तन में होती पुलकन।
सुधि करता प्रमुदित होता मैं, साक्षात किया मैंने दर्शन,
वह परम अनूठा रूप रहा, आश्चर्यचकित है मेरा मन।-77
योगेश्वर हो श्रीकृष्ण जहाँ, अरू जहाँ धनुर्धर हो अर्जुन,
बसती है वहाँ राजलक्ष्मी, सम्पत्ति विपुल अरू अक्षय धन।
ऐश्वर्य समस्त वहाँ होता, होती है विजय अटल, राजन,
होती है शक्ति, नीति होती यह देख रहा हैं मेरा मन।-78
॥ इति अष्टदशम अध्याय ।।
॥ इति श्रीमदभगवद्गीता ॥