
अठारहवाँ अध्याय : मोक्ष-सन्यास योग
अरू रही घोषणा यह मेरी, वह ज्ञान यज्ञ मेरा होगा,
जब पाठ पुनीता गीता का, कोई सुधि जन करता होगा।-70
विद्वेष भाव से मुक्त पुरुष, श्रद्धा के साथ सुनेगा जो,
पावन गीता के तत्वों का मन में भावार्थ गुनेगा जो।
हो जायेगा वह पापमुक्त, पायेगा गति पुण्यात्मा की,
हो गये पुरुष जो ब्रह्मभूत, उनमें उसकी होगी गिनती।-71
अब पूछ रहा तुझसे अर्जुन, तूने यह शास्त्र सुना सारा,
एकाग्र चित्त हो एकनिष्ठ, तूने निहितार्थ गुना सारा।
क्या अभी नहीं अज्ञान मिटा, क्या मोह अभी भी शेष रहा ?
क्या रण योद्धाओं में अपने, सम्बन्ध पुराने देख रहा?-72
अर्जुन उवाच :-
अर्जुन ने कहा कि हे अच्युत, यह कृपा कि मेरा मोह मिटा,
मेरी सुधि प्राप्त हुई मुझको, मेरा सारा सन्देह मिटा।
संशय मेरा हो गया दूर, मुझमें भगवन दृढ़ता आई,
आज्ञा दें पालूँगा उसको, प्रभु मैंने शरणोगति पाई।-73
संजय उवाच :-
संजय बोले सौभौग्य रहा जो मैंने यह अवसर पाया,
“संवाद कृष्ण, अरू अर्जुन का,” मैंने जो अविकल सुन पाया।
सचमुच महान ये आत्मायें, वार्ता करती विस्मयकारी,
सुनकर जिसको रोमांचित मैं, जो जीवन को मंगलकारीं।-74 क्रमशः ….