
अठारहवाँ अध्याय : मोक्ष-सन्यास योग
मुझ पुरुषोत्तम का क्या स्वरूप, क्या तत्व वही जन जान सके,
जो भक्ति योग मेरा पाकर, मुझको तात्विक पहचान सके।
पहिचान लिया जिसने मुझको, या पूर्ण रूप से जान लिया,
बैकुण्ठ जगत में कर प्रवेश, उसने मेरा तादात्म्य किया।-55
मेरा आश्रित निष्काम भक्त, अनुकम्पा मेरी पा जाता,
सब कर्मों का निर्वाह करे, पर अविनाशी पद पा जाता।
पा जाता परमधाम मेरा, जो रहा सनातन दिव्य परम,
जिसमें न विकार कहीं कोई, अव्यय सत् चित आनंद चरम।-56
हे अर्जुन अपने कर्म सभी, मुझको अनन्य हो अर्पण कर,
मेरे प्रति पूर्ण समर्पित हो, तू भक्ति योग का पालन कर।
अविनन्तर मेरा ध्यान किये, अपने कर्तव्य निभाता चल,
हो पूर्ण परायण मेरे तू, जीवन को सफल बनाता चल।-57
भावित मेरी सुधि से होकर, अर्जित कर मेरी कृपा पार्थ,
सब बाधायें तय कर लेगा, यह मेरी है वाणी यथार्थ।
यदि अहंकार वश यह वाणी, तू नहीं सुनेगा तो फिर सुन,
मेरा होगा उद्धार नहीं तू नष्ट हुआ अपने को गिन।-58
हो अहंकार के वश में तू, मत समझ उपेक्षा कर सकता,
मेरी आज्ञा अवहेलित कर, तू युद्ध किये बिन रह सकता
तो समझ कि यह निश्चय मिथ्या, ऐसा न करेगा तू अर्जुन,
तेरा स्वभाव तुझसे बलात, यह युद्ध करा लेगा तू सुन।-59 क्रमशः ….