श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 94वी कड़ी.. 

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता  का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।
इस दिशा में डॉ. बुधौलिया ने स्तुत्य कार्य किया। गीता का छंदमय हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करके वह हिंदी साहित्य को दरअसल एक धरोहर सौंप गए।
आज वह हमारे बीच डॉ. बुधोलिया सशरीर भले नहीं हैं, लेकिन उनकी यह अमर कृति योगों युगों तक हिंदी साहित्य के पाठकों को अनुप्राणित करती रहेगी ! उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 94वी कड़ी.. 

ग्यारहवां अध्याय  : विश्वरूप-दर्शन योग (श्री भगवान का विश्वरूप)

 

मैं देख रहा ये सबके सब, अति वेग सहित बढ़ रहे स्वयं,

अपने विनाश की ओर सहज, पाने प्रवेश मुख में भगवन ।

वैसे ही ज्यों प्रज्जवलित अग्नि-की ओर पतिंगे उड़ आवें,

अति वेग सहित उससे मिलने, मिलकर जिससे वे जल जावें।-29

हे विष्णों, देख रहा हूँ मैं ग्रस रहे लोक सम्पूर्ण आप,

अरू चाट रहे है लोकों को, प्रज्जवलित मुखों से, हे विराट।

अति उग्र प्रकाश रहा भगवन ब्रह्माण्ड विभाषित है इससे,

परिपूर्ण तेज से जगत रहा, तपता रहता नित जग उससे।-30

 

देवाधि देव हे कृपासिन्धु, है कौन आप अति उग्र रूप,

करता प्रणाम तुझको भगवन, मुझ पर प्रसन्न हो विश्वरूप।

है कौन आप इसको जानू, मन में जागी प्रभु अभिलाषा,

क्या रहा प्रयोजन क्या प्रवृत्ति, भगवन मैं समझ नहीं पाता।-31

श्री भगवानुवाच :-

जो लोको का करने विनाश, उद्यत, मैं वह हूँ महाकाल,

इस समय प्रवृत्त हूँ मैं अर्जुन, करने विनाश होकर कराल ।

अतिरिक्त पाण्डवों के रण में, दोनों पक्षों के योद्धागण,

पायेंगे मृत्यु अवश्यमेव, तू युद्ध करे या तज दे रण।-32

 

अतएव सव्यसाची अर्जुन, उठ और युद्ध का निश्चय कर,

संहार शत्रुओं का कर तू, अरू विजय राज्यश्री यश को वर।

मेरे द्वारा पहिले से ही, हो चुका हनन सब वीरों का

तू केवल बन निमित्त इसका, कौशल दिखला दे वीरों का।-33   क्रमशः….