श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 58 वी कड़ी ..

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता  का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।
इस दिशा में डॉ. बुधौलिया ने स्तुत्य कार्य किया। गीता का छंदमय हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करके वह हिंदी साहित्य को दरअसल एक धरोहर सौंप गए।
आज वह हमारे बीच डॉ. बुधोलिया सशरीर भले नहीं हैं, लेकिन उनकी यह अमर कृति योगों युगों तक हिंदी साहित्य के पाठकों को अनुप्राणित करती रहेगी ! उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 58 वी कड़ी ..     

छटवाँ अध्याय : – ध्यान-योग (अभ्यास)

परिशुद्धि हृदय की करने को, हो निरत साधना में योगी,

वश में अपनी इन्द्रियाँ करे, मन को वश में कर ले योगी।

एकाग्र चित्त मन को करने, अभ्यास निरंतर किया करे,

आचार विचार विमल रखकर, दृढ़ निश्चय से वह साध करे।-12

 

सीधा शरीर हो तना हुआ, सीधा हो गला कि सिर सीधा

नासाग्र भाग पर दृष्टि रहे, एकाग्र ध्यान अपलक सीधा।

भटके न इधर या उधर कहीं, बस एक बिन्दु पर दृष्टि रहे

मन कर्मवचन से तज मैथुन, वह ब्रहाचर्य की राह चले।-13

 

तन से हो विमल शान्त मन से, संयमित रहे भयशून्य रहे,

मन में मेरा ही ध्यान रहे, अन्तस में मेरा भाव रखे।

मेरे प्रति आत्म समर्पण कर, माने जीवन का लक्ष्य मुझे

दृढ़ संयम से आसन व्रत से, योगी कर लेता प्राप्त मुझे।-14

 

इस तरह क्रियाएँ कर योगी, तन मन सबके दृढ़ संयम से,

अभ्यास मार्ग पर नित चलकर, पा चले सफलता क्रम क्रम से।

भव रोग शान्त उसका होता, पर व्योम द्वार मिलता उसको

मिल जाता भगवद्धाम उसे, प्रिय होता वह योगी मुझको ।-15

 

हे अर्जुन भोजनजीवी जो, भोजन का ध्यान नहीं रखते,

भोजन करते हैं बहुत अधिक, या भोजन अतिशय कम करते।

अनियमित सोते हुए अधिक या बहुत अधिक जागा करते

आहार शुद्धि बिन चर्या के वे कभी नहीं योगी बनते।-16

 

आहार विहान व्यवस्थित हो, जिनकी दिनचर्या हो नियमित,

कर्मों का जिनको ध्यान रहे, जो रखें वृत्तियाँ अकलुषित।

संयमित कार्य-व्यापार रखें, उनको यह योगाभ्यास सधे,

योगाभ्यास मानव मन से, जग का सारा दुख दुर करे।-17   क्रमशः…