श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 37वी कड़ी..   

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता  का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।
इस दिशा में डॉ. बुधौलिया ने स्तुत्य कार्य किया। गीता का छंदमय हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करके वह हिंदी साहित्य को दरअसल एक धरोहर सौंप गए।
आज वह हमारे बीच डॉ. बुधोलिया सशरीर भले नहीं हैं, लेकिन उनकी यह अमर कृति योगों युगों तक हिंदी साहित्य के पाठकों को अनुप्राणित करती रहेगी ! उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 37वी कड़ी..                                                                                                                                                                                                   
तीसरा अध्याय :  – कर्मयोग         
अर्जुन उवाच :-

अर्जुन ने कहा कि हे भगवन, प्रेरित करता है कौन इसे ?

बरबस बिन इच्छा के प्रवृत्त, पापों में करता कौन इसे ?

जीवात्मा अविकारी विशुद्ध, क्यों पाप कर्म करने बढ़ता ?

है कौन कि जो उसको बलात, प्रेरित करता, प्रवृत्त करता?-36

श्रीभगवान उवाच :-

भगवान कृष्ण ने कहा पार्थ, कारण इसका है मात्र काम,

उत्पन्न रजोगुण से होता, अतृप्त रहा तो हुआ वाम

यह क्रोध रूप धारण करता, होती न वासना तृप्त कभी,

यह महापातकी रहा सदा, इससे न बडा है शत्रु कही।-37

 

जीवात्मा की चेतनता को, धूमिल करता है काम सदा,

अनुपात अलग रहते उसके, पर बना आवरण ढँके सदा।

ज्यों धुँआ अग्नि को ढंक लेता, अथवा दर्पण पर धूल चढ़े,

या गर्भ जेर से आच्छादित, शिशु को भीतर असहाय रखे।-38

 

इस तरह चेतना मानव की, है ढँकी काम से हे अर्जुन,

जो अग्नि समान प्रचण्ड प्रबल, होता न शान्त, पाकर ईंधन ।

कितना भी विषय भोग कर ले, पर तृप्ति न उसको मिल पाती,

यह रहा चेतना का बैरी, चेतनता धूमिल पड़ जाती।-39

 

यह काम इन्द्रियों में बसता, मन में भी काम निवास करे,

यह बसे बुद्धि में मानव की मनुबुद्धि इन्द्रियाँ साथ करे।

इनके द्वारा जीवात्मा के, वास्तविक ज्ञान को ढंक लेता,

छा जाता है फिर तन मन पर, उसकों यों मोहित कर लेता।-40     क्रमांक..