
खुल गये स्वर्ग के द्वारा उन्हें, विजयी तो राज्योपभोग मिला
यदि उन्हें वीरगति प्राप्त हुई, तो उन्हें मुक्ति का लाभ मिला।-32
फिर भी इस धर्म-युद्ध से तू, हे पार्थ अगर उपरत होगा,
तो निश्चित है, यह है प्रमाद, तू अपयश का भागी होगा।
च्यूत हो स्वधर्म पालन से तू, बस केवल पाप कमायेगा,
योद्धाओं बीच कलंक बना, तू अपनी कीर्ति गँवायेगा।-33
क्षेपक
अर्जुन तेरे जैसा योद्धा, तीनो भुवनों में अन्य नहीं,
अर्जित की तूने धवल कीर्ति, क्या पाशुपतास्त्र अन्यत्र नहीं।
गुरू ने विशिष्ट शस्त्रास्त्र दिया सुरपति ने भी आशीष दिया,
रणकौशल अद्भुत अद्वितीय अर्जित अप्रति सम्मान किया।
उस सब पर पानी फेरेगा, क्या पीठ दिखायेगा रण में,
कोई न युक्ति संगत कारण क्यों कायरता लाता मन में।-33
तेरे अपयश की गाथा को, संसारी जन दुहरायेंगे,
क्या उनको तू सह पायेगा, अपशब्द कहे जो जायेंगे।
अपकीर्ति मृत्यु से हीन रही, ऐसे जीवन से भला मरण,
यदि कीर्ति गई, सम्मान गया, फिर तो वह नारकीय जीवन।-34
जो आज मान देते तुझको, सम्मान बहुत करते हैं जो,
जो महारथी यशगान करे, या महारथी डरते हैं जो।
करूणा के कारण विरत हुआ, कोई न इसे सच मानेगा,
कायर भयवश रण से भागा, ऐसा तू माना जायेगा।-35 क्रमशः…