श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 21वी कड़ी..   

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता  का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।
इस दिशा में डॉ. बुधौलिया ने स्तुत्य कार्य किया। गीता का छंदमय हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करके वह हिंदी साहित्य को दरअसल एक धरोहर सौंप गए।
आज वह हमारे बीच डॉ. बुधोलिया सशरीर भले नहीं हैं, लेकिन उनकी यह अमर कृति योगों युगों तक हिंदी साहित्य के पाठकों को अनुप्राणित करती रहेगी ! उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 21वी कड़ी..   
   
दूसरा अध्याय : सांख्य योग
हे पार्थ सुखी है क्षत्रिय वे, जो युद हेतु अवसर पाते,जो अपने आप उपस्थित हो, या सुखकर अवसर कम आते।

खुल गये स्वर्ग के द्वारा उन्हें, विजयी तो राज्योपभोग मिला

यदि उन्हें वीरगति प्राप्त हुई, तो उन्हें मुक्ति का लाभ मिला।-32

 

फिर भी इस धर्म-युद्ध से तू, हे पार्थ अगर उपरत होगा,

तो निश्चित है, यह है प्रमाद, तू अपयश का भागी होगा।

च्यूत हो स्वधर्म पालन से तू, बस केवल पाप कमायेगा,

योद्धाओं बीच कलंक बना, तू अपनी कीर्ति गँवायेगा।-33

क्षेपक

अर्जुन तेरे जैसा योद्धा, तीनो भुवनों में अन्य नहीं,

अर्जित की तूने धवल कीर्ति, क्या पाशुपतास्त्र अन्यत्र नहीं।

गुरू ने विशिष्ट शस्त्रास्त्र दिया सुरपति ने भी आशीष दिया,

रणकौशल अद्भुत अद्वितीय अर्जित अप्रति सम्मान किया।

उस सब पर पानी फेरेगा, क्या पीठ दिखायेगा रण में,

कोई न युक्ति संगत कारण क्यों कायरता लाता मन में।-33

 

तेरे अपयश की गाथा को, संसारी जन दुहरायेंगे,

क्या उनको तू सह पायेगा, अपशब्द कहे जो जायेंगे।

अपकीर्ति मृत्यु से हीन रही, ऐसे जीवन से भला मरण,

यदि कीर्ति गई, सम्मान गया, फिर तो वह नारकीय जीवन।-34

 

जो आज मान देते तुझको, सम्मान बहुत करते हैं जो,

जो महारथी यशगान करे, या महारथी डरते हैं जो।

करूणा के कारण विरत हुआ, कोई न इसे सच मानेगा,

कायर भयवश रण से भागा, ऐसा तू माना जायेगा।-35    क्रमशः…