श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 10 वी कड़ी..   

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता  का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।
इस दिशा में डॉ. बुधौलिया ने स्तुत्य कार्य किया। गीता का छंदमय हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करके वह हिंदी साहित्य को दरअसल एक धरोहर सौंप गए।
आज वह हमारे बीच डॉ. बुधोलिया सशरीर भले नहीं हैं, लेकिन उनकी यह अमर कृति योगों युगों तक हिंदी साहित्य के पाठकों को अनुप्राणित करती रहेगी ! उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 10 वी कड़ी..   
   
पहला अध्याय : अर्जुन विषाद योग
यद्यपि ये भ्रष्टचित्त होकर, कुल के विनाश को उद्यत हैं,इनको न दोष अपने दिखते, ये मित्र-द्रोह से अवगत हैं।-37

 

पर मित्र द्रोह, कुल द्रोह पाप, अपराध इसे हम जान रहे

क्यों धर्म करे ऐसे भगवन, जिनको दूषित हम मान रहे।-38

 

कुल धर्म सनातम मिट जाते, कुल का क्षय होने के कारण,

बढ़ने लगता अधर्म कुल में, जब धर्म क्षीण होता भगवन ।

कुल के रक्षक जो वयोवृद्ध, संरक्षित देवी गुण रखते,

रूक जाता कुल का अभ्युदय, धार्मिक गुरूवृद्धों के क्षय से।-39

 

कुल में अधर्म बढ़ जाने से, दूषित होती है कुल की नारी,

नारी के दूषित होने से, सन्तति होती दूषित सारी।

दूषित सन्तान,वर्ण संकर, दायित्व शून्य व्यभिचार बढ़े,

हे वाष्णेय धर्माश्रम के, विघटन से पापाचार बढ़े।-40      क्रमशः…