रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है। भर गया घोष, भर गया शोर, स्वर सबके मिलकर घोर हुए,
कर दिया भीष्म ने शंखनाद, कुरूवंशी सभी विभोर हुए।-13
उस ओर सारथी अर्जुन के, बनकर माधव बैठे रथ में,
जो अग्निदेव का दिया हुआ, थे जुते धवल घोड़े जिसमें।
दोनों ने फेंके दिव्य शंख, भर गया अलौकिक नाद वहाँ
उसका ही विजय वरण करती, होता है प्रभु का साथ जहाँ।-14
श्रीकृष्णार्जुन संवाद
स्वामी रहे इन्द्रियों के जो क्षीकेश ने शंख बजाया,
पाञ्चजन्य फूंकते हषीकेष, देवदत्त धनंजय ने फूँका,
पौण्ड्र शंख को फूँक वृकोदर, भीम सेन स्वर के संग हूका
तदनन्तर पौण्ड्रम महाशंख, अतिबली वृकोदर ने फूंका।-15
पाण्डव युवराज युधिष्ठिर ने, फूँका राजन अनंत विजयम,
सहदेव नकुल मणि पुष्पक, करते सुघोष से नभ छेदन।
अलग-अलग शंखों का वादन, करता नव उत्साह प्रवाहित
सन्मार्गी के मन में सत की, बहती नित रसधार अबाधित।-16 क्रमशः…