भारतीय ज्ञान परंपरा चरित्र निर्माण का सशक्त जरिया बने..

भारतीय ज्ञान परंपरा को केंद्रित कर विभिन्न विषयों के पाठ्यक्रम निर्माण को लेकर राजा शंकर शाह विश्वविद्यालय छिन्दवाड़ा द्वारा पीएम कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस छिन्दवाड़ा में आयोजित कार्यशाला में मुख्य अतिथि छिन्दवाड़ा सांसद विवेक बंटी साहू ने कहा कि 
भारतीय ज्ञान परंपरा में गहन ज्ञान के खजानों ने हमें वैश्विक स्तर पर सर्वोत्कृष्ट स्थान दिलाने में अपनी अग्रणी भूमिका निभाई है ….
कार्यशाला अध्यक्ष राजा शंकर शाह विश्वविद्यालय छिन्दवाड़ा की कुलगुरू प्रो. लीला भलावी ने कहा कि भारतीय सांस्कृतिक के दिव्य मूल्य मनुष्यता निर्माण में भूमिका का निर्वहन कर भावी पीढ़ी को अस्तित्व निर्माण  की गरिमा प्रदान करें।
छिन्दवाड़ा कलेक्टर शीलेन्द्र सिंह ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा के स्वयं पर गर्व करने योग्य भरोसेमंद बौद्धिक संपदा भंडार को पुनर्जीवन करने की आज महती आवश्यकता है। उच्च शिक्षा विभाग भोपाल के विशेष कर्व्यस्थ अधिकारी धीरेन्द्र शुक्ला ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा की संचित निधि का आज के छात्रों के चरित्र निर्माण में सामाजिक सरोकारों की समस्याओं के समाधान की युक्तियां समाहित करें। महर्षि पाणिनि संस्कृत विश्वविद्यालय उज्जैन के बीज वक्ता प्रो. विजय कुमार सी. जी. ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा में छात्रों के स्थिर विकास के लिए जिज्ञासा, खोज, अनुभव व संवाद आधारित शिक्षण पद्धति को अध्ययन अध्यापन में लाने की जरूरत है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षाविद डॉ. रविन्द्र कुमार वशिष्ठ ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारतीय विश्वविद्यालयों में भारतीय ज्ञान परंपरा की जननी संस्कृत की संस्कारित, अद्भुत और समृद्ध बौद्धिक चेतना के प्रसाद को पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जाए। प्राचार्य प्रो. लक्ष्मीचंद ने कहा कि भारतीय सनातन संस्कृति अपनी अनुप्राणित निधि की संस्कारित ऊर्जा से प्रारब्ध संवारने का काम कर सकती है। जनभागीदारी अध्यक्ष भरत घई ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा में शिक्षक व विद्यार्थी के बीच जितना अधिक भावनात्मक जुड़ाव होगा, सुधार उतना ही प्रबल होगा। प्रो. टीकमणि पटवारी ने कहा कि संपूर्ण जगत को अपने उदार चरित्र से अभिभूत करने वाली भारतीय ज्ञान दर्शन परंपरा वैश्विक संस्कृति निर्माण में मार्गदर्शी भूमिका निभा सकती है।
कार्यशाला संयोजक डॉ. पी. एन. सनेसर ने कहा कि भारत भारती की प्रज्ञा में संसार की सार्वभौमिक ज्ञान पिपासा की पूर्ति के लिए पर्याप्त खजाने मौजूद हैं। कार्यशाला के तृतीय सत्र में 21 विषयों के विषय विशेषज्ञों द्वारा ज्ञान परंपरा के विविध आयामों को गहनता से विश्लेषित किया गया। विशेषज्ञों ने भारतीय धरोहर और संस्कृति को पाठ्यक्रम का अंग बनाने, अपने अमूल्य सुझाव, संदर्भों और अनुशंसाओं सहित संधारित किए।  पाठ्यचर्या को अधिक प्रासंगिक, समयोचित और विद्यार्थी केंद्रित बनाने के लिए भारतीय दर्शन, धर्म, आध्यात्म और गौरवशाली परंपरा के बीज तत्व को सम्मिलित किया जाना चाहिए,  इन्हीं सारतत्वों से युक्त अनुशंसाएं विशेषज्ञों द्वारा की गई।
स्वरांजलि श्री नारायण संगीत एवं कला महाविद्यालय, छिंदवाड़ा की प्राचार्या डॉ. श्रीमति मृदुला शर्मा जी के मार्गदर्शन में भारतीय शास्त्रीय संगीत के अभिन्न अंग कथक नृत्य शैली में गुरुवंदना, शिव स्तुति व तराना की प्रस्तुति  दी गई जिसमें  पियूष मोटघरे, बीपीए कथक स्नातक की छात्राएँ – प्रतिभा पाल, नेहा कुमरे, परिणीता लांजीवार, प्रियल खौसी व यशी विश्वकर्मा प्रमुख थी।