रचित ‘गीताज्ञानप्रभा’ ग्रंथ एक अमूल्य ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा ज्ञानेश्वरीजी महाराज रचित ज्ञानेश्वरी गीता का भावानुवाद किया है, श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को गीता ज्ञान प्रभा में 2868 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है।श्लोक (६२)
हे अर्जुन उस परमेश्वर की, शरणागत हो तू सभी तरह,
उसकी ही कृपा प्राप्त कर तू, यश पायेगा तू सभी तरह ।
पायेगा मन की शांति परम, तू परमधाम भी पायेगा,
जो दिव्य सनातन शाश्वत है, वह तुझे प्राप्त हो जायेगा
अपने सारे अस्तित्व सहित, उसकी ही शरण ग्रहण कर तू,
पायेगा उसकी परम कृपा, वह परम धाम पायेगा तू ।
पायेगा शाश्वत शांति पार्थ, परमात्मा का सहयोगी बन,
अपना निर्धारित कर्म समझ, कर्तव्य, उसे तू पूरा कर ।
श्लोक (६३)
यह ज्ञान रहा अति गोपनीय, मैंने जो तेरे लिए कहा,
यह गीता शास्त्र सुना तूने, तुझपर इसका क्या असर पड़ा?
तू पूर्ण रुप से सोच समझ, फिर अपना निर्णय कर अर्जुन,
जैसी इच्छा हो वैसा कर, वह कर जो कहता तेरा मन ।
यह ज्ञान तुझे बतलाया है, जो रहा रहस्यों से बढ़कर,
इस पर विचार कर भलीभांति, फिर जैसी इच्छा, वैसा कर ।
परमात्मा करता है पुकार, हम सुनें उसे या नहीं सुनें,
हम हैं स्वतंत्र निर्णय करने, हम पर उसके न दबाव रहे ।
वह नहीं हाँकता है हमको, वह हमको नहीं विवश करता,
तैयार मनाकर करता है, वह निर्णय को स्वतन्त्र रखता ।
आदेश नहीं देता है वह, धीरज देता जब हम गिरते,
धीरज धर करे प्रतीक्षा वह, जब तक उस ओर न हम मुड़ते ।
स्वेच्छा से ही पहुंचे मनुष्य, उस तक ऐसी प्रभु की चिंता,
इसलिए तटस्थ, निरपेक्ष रह, वह परम पिता बनता ।
संकल्प शक्ति, मानवीय यत्न, का करे समर्थन, बल देता,
साधक बनता उस साधक का जो अपनी नाँव स्वयं खेता ।
करना चाहे वह कृपा मगर, उन पर जो कृपापात्र बनते,
अनुभूति अखण्डता की करते, अपने विवेक पर जो चलते ।
विश्वास उचित कितना इसका, ढूँढा करते हैं समाधान,
रखते विवेक की दृष्टि तीव्र, बंधकर न रहे जो पशु समान ।
जो कह सकता था, ज्ञान-तत्व, वह तेरे प्रति मैं सुना चुका
यह ज्ञान रहस्यमय रहा पार्थ,कहने को अब कुछ नहीं बचा
ये ज्ञान, कर्म अरु भक्तिभोग, जो भाए, उसका कर पालन
या समझे जो कुछ ठीक वहीं, अपना निर्णय कर तू अर्जुन । क्रमशः….