रचित ‘गीताज्ञानप्रभा’ ग्रंथ एक अमूल्य ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा ज्ञानेश्वरीजी महाराज रचित ज्ञानेश्वरी गीता का भावानुवाद किया है, श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को गीता ज्ञान प्रभा में 2868 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है।अध्याय अठारह – ‘निष्कर्ष योग’ समस्त अध्यायों का सार संग्रह । मोक्ष के उपायभूत सांख्ययोग (सन्यास) कर्मयोग (त्याग) का अंग प्रत्यंगों सहित वर्णन ।
श्लोक (१)
अर्जुन उवाच, अर्जुन बोले हे महाबाहु, सम्पूर्ण तत्व का सार कहें,
हे हृषिकेश, केशीहन्ता, मेरी जिज्ञासा शान्त करें ।
सन्यास तत्व अरु त्याग तत्व, को पृथक-पृथक कृपया कहिए,
मैं इन्हें जानना चाह रहा, प्रभु इतनी और कृपा करिए ।
सर्वान्तर्यामी शक्तिमान, सबके मन की लखने वाले,
साक्षात आप परमेश्वर हैं, सब समाधान करने वाले ।
‘सन्यास’कि ‘ज्ञानयोग’क्या है, भगवन इसका है क्या स्वरुप?
साधक इसके हैं भाव कौन? बाधक जो, उनका क्या स्वरुप?
वे कर्म कौन जो मदद करें, या आयें बनकर जो बाधा?
किन भावों, किन कर्मो द्वारा, जाता यह ज्ञानयोग साधा?
ऐसे ही त्याग कि कर्मयोग का होता है स्वरुप कैसा?
क्या करना उसको उपयोगी, जो बाधक कर्म रहा कैसा?
वह कर्मयोग कैसा होता, जिसमें मिश्रित हो भक्ति भाव?
या जिसमें भक्ति प्रधान रहे, इन दोनों में है क्या दुराव?
कैसे होता इनका साधन, इनके क्या रुप अलग होते?
क्या भक्ति रही, क्या कर्म रहा, क्या तल इनके विभिन्न होते?
लौकिक कर्मो से भिन्न रहे, शास्त्रीय कर्म किन अर्थो में?
कैसे सधता है कर्मयोग, भक्तों के अलग-अलग तल में?
इन सब बातों को भली भांति, मैं जानूँ, चाह रहा भगवान
समझायें इनको अलग-अलग, हो इनके बीच नहीं मिश्रण ।
हे केशव कृपया बतलायें, सन्यास, त्याग को पृथक-पृथक,
इनके स्वरुप को बतलायें, समझायें इनको अलग-अलग ।
दोनों समान दिखते हैं पर, दोनों में है क्या मूल भेद?
मेरी जिज्ञासा शांत करें, हे महाबाहु, हे हृषिकेश । क्रमशः….