प्रिय सुधि पाठकों
आपको सूचित करते हुए बड़ा हर्ष हो रहा है की आज से हम अपने सुधि पाठकों के लिए श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला ‘गीता ज्ञान प्रभा ‘ शुरू करने जा रहे है ….
मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलियाजी द्वारा रचित ‘गीता ज्ञान प्रभा’ ग्रंथ एक अमूल्य ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा ज्ञानेश्वरीजी महाराज रचित ज्ञानेश्वरी गीता का भावानुवाद किया है, श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को गीता ज्ञान प्रभा में 2868 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है।
बुधौलियाजी द्वारा ‘गीता ज्ञान प्रभा’में गीता के सूक्ष्मतम गूढ़ ज्ञान को बहुत सरल छंदों द्वारा ग्राह बनाकर स्पष्ठ किया गया है। सन 2005 को डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया द्वारा सृजित गीता ज्ञान प्रभा को जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्दजी द्वारा गीता ज्ञान अलंकरण से पुरुस्कृत किया गया था, वर्तमान शंकराचार्य श्री सदानन्दजी महाराज द्वारा गीता ज्ञान प्रभा की सारगर्भित भूमिका लिखी गई है।
ग्रंथमुकुटमणि सागर की गहराई जैसा गीतोपनिषद के गीताज्ञानप्रभा स्वरूप से गीता का मर्म आम जन के लिए बहुत आसान हो गया है। सर्वजनहिताय हम धारावाहिक रूप से ” खबरद्वार “ के अपने पेज ‘गीता ज्ञान प्रभा’ में इसका नियमित प्रकाशन आरम्भ कर रहे है। सुधिजनो से प्रतिक्रिया अपेक्षित है….✍️ ए.के.बुधौलिया
” गीता-ज्ञान- प्रभा “
अध्याय- एक
भगवान वेद व्यास ने धृतराष्ट्र के समीप आकर उनसे कहा- यदि तुम घोर संग्राम देखना चाहो, तो मैं तुम्हें दिव्य नेत्र प्रदान कर सकता हूं। इस पर धृतराष्ट्र ने कहा- ब्रह्मऋषि श्रेष्ठ मैं कुल के इस हत्याकाण्ड को अपनी आंखों देखना तो नहीं चाहता परन्तु इसका सारा वृत्तान्त भलीभांति सुनना चाहता हूँ। तब महर्षि वेद व्यास जी ने संजय को दिव्य दृष्टि प्रदान करके धृतराष्ट्र से कहा- ये संजय तुम्हें युद्ध का सब वृत्तान्त सुनावेंगे, युद्ध की समस्त घटनावलियों को ये प्रत्यक्ष देख सुन और जान सकेंगे, सामने या पीछे से, दिन या रात में, गुप्त या प्रगट, क्रिया रुप में परिणत या केवल मन में आई हुई ऐसी कोई भी बात नहीं होगी जो इनसे – तनिक भी छिपी रह सकेगी, ये सब बातों को ज्यों का त्यों जान लेंगे, इनके शरीर से न तो कोई शस्त्र छू जायेगा और न इन्हें थोड़ी भी थकावट ही होगी।
महाभारत युद्ध के सर्वनाश को कोई भी रोक नहीं सकेगा, अन्त में धर्म की जय होगी।
भगवान व्यास के चले जाने के बाद धृतराष्ट्र के पूछने पर संजय उन्हें पृथ्वी के विभिन्न द्वीपों का वृत्तान्त सुनाते रहे- तदनन्तर जब कौरव-पाण्डवों का युद्ध आरंभ हो गया और लगातार दस दिनों तक युद्ध होने पर पितामह भीष्म अपने रथ से गिरा दिए गए तब संजय ने धृतराष्ट्र के पास जाकर उन्हें अकस्मात भीष्म के पतन का समाचार सुनाया, उसे सुनकर धृतराष्ट्र को बड़ा ही दुख हुआ और युद्ध की सारी बातें विस्तारपूर्वक सुनाने के लिए उन्होंने संजय से कहा । संजय ने दोनों ओर की सेनाओं की व्यूह रचना आदि का विस्तृत वर्णन किया. इसके बाद धृतराष्ट्र ने विशेष विस्तार के साथ आरंभ से युद्ध की पूरी घटनाएँ जानने के लिए संजय से प्रश्न किया-यहीं से श्रीमद्भगवत गीता का पहला अध्याय आरंभ होता है. महाभारत शांति पर्व में यह पच्चसीवां अध्याय है : धृतराष्ट्र संजय से प्रश्न करते है धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्रे…….डॉ. रमेश कुमार बुधौलिया
-: अर्जुन विषाद योग :-
श्लोक ..१
धृतराष्ट्र उवाच-
पुत्र मोह से भरे हुए, धृतराष्ट्र पूछते संजय से,
समाचार क्या कुरुक्षेत्र के रहे, कहो संजय मुझसे ।
कुरुक्षेत्र जो पुण्यक्षेत्र है, जहाँ युद्ध को जुड़े सभी,
मेरे, उनके और सभी के, हाल सुनाओ मुझे अभी ।
(२,३)
संजय उवाच-
संजय बोले सुनिए राजन, जैसे महाप्रलय आया,
महाकाल ने जैसे अपना, भीषण आनन फैलाया ।
अनी पाण्डवों की उस जैसी, क्षुब्ध क्रोध से सुलग गई,
कौन रोक सकता था उसको, दिशि-दिशि से धधक गई । !
ज्यों बड़वानल प्रलय वायु से, सागर का शोषण करता,
कालकूट के विष का जैसे, शमन न कोई कर सकता ।
हुई पाण्डवों की सेना, विकराल व्यूह रचकर अपने,
वीरों का भी वक्ष देख, जिसको लगता भय से कपने ।!
लेकिन केहरि करे न चिंता, ज्यों हाथी का दल लखकर,
तुच्छ रहा दुर्योधन को, यह पाण्डव सेना का लश्कर ।
गया निकट आचार्य द्रोण के, और उन्हें यो उकसाया,
देख रहे आचार् पांडवों का यह फन्दा फैलाया !!
द्रौपद धृष्टधुम्न उसी की ही रही व्यूह रचना सारी,
चलते फिरते किले सरीखी, लगती है सेना सारी ।
धृष्टधुम्न वह जिसे, आपने ही हर कला सिखाई है,
दिखा रहा है वही, आपको अब अपनी चतुराई है ।! …. क्रमशः