विकास के नाम पर विनाश की आहट..

 विकास के नाम पर विनाश की आहट — क्या प्लेटिनियम खदान किसानों की ज़मीन निगल जाएगी ?

✍️ संपादकीय : राकेश प्रजापति

छिंदवाड़ा का उमरेठ क्षेत्र इन दिनों विकास की नहीं, विनाश की आशंकाओं की चर्चा में है। यहाँ प्रस्तावित प्लेटिनियम खदान परियोजना ने किसानों, आदिवासियों और ग्रामीणों की नींद उड़ा दी है।
सरकार कहती है — यह परियोजना “प्रगति” का प्रतीक है। पर सवाल उठता है — किसकी प्रगति और किसकी कीमत पर ?

धरती से सोना निकलेगा, पर क्या मिट्टी बचेगी ?

उमरेठ की धरती उपजाऊ है। यहां के खेत पीढ़ियों से अन्न उगाते आए हैं। अब उसी मिट्टी के नीचे छिपे खनिज की तलाश में खुदाई की तैयारी है। लेकिन जब यह खुदाई शुरू होगी, तो खेत उजड़ेंगे, कुएं सूखेंगे और घरों में चूल्हे ठंडे पड़ जाएंगे।
किसानों का कहना है — प्लेटिनियम से सरकार को पैसा मिलेगा, लेकिन उन्हें बदले में सिर्फ पथराई हुई ज़मीन और टूटी हुई उम्मीदें  मिलेंगी।

आदिवासियों के अस्तित्व पर हमला ..

इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में आदिवासी परिवार रहते हैं। जिनका जीवन जल, जंगल और जमीन से जुड़ा है। खदान परियोजना केवल उनकी ज़मीन नहीं लेगी, बल्कि उनकी पहचान और संस्कृति पर भी प्रहार करेगी।
जो लोग सदियों से जंगलों की रक्षा कर रहे हैं, वही आज विकास के नाम पर विस्थापन की कगार पर हैं।

विकास का यह मॉडल — कुछ के लिए स्वर्ण, बाकी के लिए श्मशान ..

खनन परियोजनाओं का अनुभव बताता है कि इनसे लाभ केवल ठेकेदारों और कंपनियों को होता है, जबकि स्थानीय लोग बेरोजगार और बेघर हो जाते हैं।
झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे राज्यों में यह मॉडल पहले ही देखा जा चुका है — जहां “खनिज समृद्धि” ने गांवों को गरीब बना दिया।

कानूनी सहमति बनाम सामाजिक सहमति ..

सरकारों को यह समझना होगा कि विकास केवल कानूनी अनुमति से नहीं चलता — इसके लिए सामाजिक सहमति ज़रूरी है।
अगर जनता को लगे कि विकास उसके अस्तित्व के खिलाफ जा रहा है, तो वह आंदोलन बन जाता है — जैसे नर्मदा बचाओ आंदोलन या फिर हाल ही में सिलगेर, बस्तर की आवाज़ें।

सरकार से सवाल ..

  • क्या स्थानीय लोगों की सहमति के बिना यह खदान मंजूर की गई ?

  • क्या पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) की रिपोर्ट सार्वजनिक की गई ?

  • क्या किसानों और आदिवासियों के पुनर्वास की कोई स्पष्ट योजना है ?

अगर इन सवालों के जवाब “नहीं” में हैं, तो यह परियोजना केवल “खनन” नहीं बल्कि “उजाड़” की कहानी है।

विकास की असली परिभाषा ..

विकास वह नहीं जो खेत छीन ले, जंगल काट दे और नदी सुखा दे।
विकास वह है जो जीवन को समृद्ध करे, न कि समाप्त।
उमरेठ के किसान और आदिवासी केवल अपनी ज़मीन नहीं बचा रहे — वे उस धरती माँ की अस्मिता की रक्षा कर रहे हैं जो आने वाली पीढ़ियों की धरोहर है।

यह संघर्ष सिर्फ खदान का नहीं, बल्कि सवाल है — “क्या इंसान अपने ही घर को खोदकर अमीर बन सकता है ?”