सांवरी परिक्षेत्र की अनूठी केस स्टोरी – तीन रातों की खोज, और मां–बेटी का मिलन
जंगली बिल्ली की प्यारी बच्ची का ममतामयी रेस्क्यू
✍️ राकेश प्रजापति
सतपुड़ा के शांत, हरियाली से ढके जंगल सिर्फ पेड़ों का समूह नहीं, बल्कि प्रकृति के असंख्य जीवों का आत्मीय घर हैं। इन्हीं वादियों में इंसान और वन्य प्राणी के बीच बरसों से एक अनकहा रिश्ता बहता आया है—संरक्षण का, स्नेह का और सह-अस्तित्व की उस मधुर धुन का, जो इस धरती के पारिस्थितिक संतुलन को जीवित रखती है।
इसी प्रेम और जिम्मेदारी का जीवंत उदाहरण हाल ही में सामने आया जब सांवरी परिक्षेत्र की वन टीम ने एक जंगली बिल्ली की बच्ची को उसकी मां से मिलाने का दिल छू लेने वाला रेस्क्यू ऑपरेशन अंजाम दिया।
जब सतपुड़ा की गोद से बिछड़ी एक नन्ही जान
ग्राम बदनूर के पास ग्राम जरोंद के खेत में 25–30 दिन की एक नन्ही जंगली बिल्ली (फेलिस सिल्वेसट्रीस) की बच्ची भूख-प्यास से बिलख रही थी। ग्रामीणों को वह बच्ची तेज आवाज और शरीर की बनावट के कारण तेन्दुआ शावक लगी।
सुरक्षा के भाव से ग्रामीण उमेश कुमरे ने तुरंत सांवरी रेंजर कीर्तिबाला गुप्ता को सूचना दी।
यहीं से शुरू हुआ प्यार, जिम्मेदारी और वैज्ञानिक समझ का एक अनूठा रेस्क्यू।
वैज्ञानिक रेस्क्यू और उपचार
रेंजर कीर्तिबाला गुप्ता दल के साथ मौके पर पहुंचीं और बच्ची को सुरक्षित रेस्क्यू किया।
वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट डॉ. अंकित मेश्राम की देखरेख में बच्ची का उपचार और स्वास्थ्य परीक्षण किया गया।
जिम्मेदारी केवल इलाज तक सीमित नहीं थी—असली चुनौती थी मां का पता लगाना और बच्ची को स्वाभाविक पर्यावास में वापस लौटाना।
तीन रातें… जंगल की खामोशी… और मां की तलाश
परिक्षेत्र अधिकारी कीर्तिबाला गुप्ता, वनपाल पवन ढेपे, वनरक्षक शैलेन्द्र वाड़ीवार, सौरभ सिंह चौहान, राजेश दाढ़े और विवेक पटेल ने तीन रातों तक जंगल में रात्रि विचरण किया। वे उसी क्षेत्र में टहलते रहे जहाँ जंगली बिल्ली का मूवमेंट संभावित था।
हर ठंडी रात, हर पत्ते की सरसराहट, हर आवाज में उम्मीद छिपी थी कि कहीं मां अपने खोए बच्चे को ढूंढ रही होगी।
और वह क्षण आया… मां ने अपनी बच्ची को गले लगा लिया
25 नवंबर 2025 की रात करीब 1:30 से 2:00 बजे
वन टीम कुछ दूरी पर छिपी हुई थी।
अचानक झाड़ियों के बीच हल्की सी परछाईं हिली।
मां बिल्ली आई… अपनी बच्ची की गंध सूंघी… उसे मुंह में उठाया… और जंगल की गहराइयों में ले गई।
यह मिलन कैमरे में कैद नहीं हो सका—क्योंकि जंगली बिल्ली रात्रिचारी होती है।
पर उनकी मिलने की आवाजें,
और वन कर्मचारियों के चेहरों पर चमकता सुकून,
सब कुछ कह गया—प्रकृति में ममता अमर है, और मानवता उसका सबसे सुंदर रूप।
यह रेस्क्यू क्यों महत्वपूर्ण है ?
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यह घटना दर्शाती है कि वन्य प्राणी संरक्षण सिर्फ घायल जानवरों के इलाज तक सीमित नहीं है।
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पर्यावरण संतुलन के लिए प्रत्येक जीव का अपने प्राकृतिक घर में सुरक्षित रहना बेहद आवश्यक है।
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ऐसे ऑपरेशन पारिस्थितिक तंत्र को सुरक्षित रखते हैं और मानव–प्रकृति के प्रेमपूर्ण संबंध को मजबूत बनाते है।
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नन्ही बिल्ली की सफल पुनर्स्थापना वन विभाग की वैज्ञानिक क्षमता और करुणा दोनों का प्रमाण है।
वरिष्ठ अधिकारियों का दिशा-निर्देशन : मधु वी. राज, मुख्य वनसंरक्षक छिंदवाड़ा , साहिल गर्ग, वनमंडलाधिकारी पश्चिम छिंदवाड़ा , रेंजर कीर्तिबाला गुप्ता , विशेष सहयोग : पेंच पार्क प्रबंधन: एफ.डी. श्री देवा प्रसाद, डी.डी. श्री रजनीश सिंह ,वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट: डॉ. अंकित मेश्राम, असिस्टेंट वेट. रामपाल
फील्ड टीम : पवन ढेपे ,शैलेन्द्र वाड़ीवार ,सौरभ सिंह चौहान ,राजेश दाढ़े ,विवेक पटेल
निष्कर्ष: जब इंसान और जंगल साथ मुस्कुराते हैं
यह केस स्टोरी सिर्फ एक रेस्क्यू ऑपरेशन नहीं, बल्कि यह संदेश है—कि प्रकृति और मनुष्य एक-दूसरे के पूरक हैं।
जहाँ संवेदना, वैज्ञानिकता और समर्पण मिलते हैं, वहाँ हर जंगल एक सुरक्षित घर बन जाता है।
सतपुड़ा की वादियों में यह मां-बेटी का मिलन आने वाले समय में वन संरक्षण प्रयासों की प्रेरणादायक मिसाल रहेगा।