भांडेर में पालतू कुत्ते ‘रॉकी’ की तेरहवीं ..

भांडेर में पालतू कुत्ते ‘रॉकी’ की तेरहवीं — इंसान और जानवर के बीच प्रेम की अनोखी मिसाल

“वो सिर्फ पालतू नहीं, परिवार का हिस्सा था…” भांडेर में अंकी चौरसिया परिवार ने अपने पालतू कुत्ते ‘रॉकी’ की मौत के बाद पूरे हिंदू रीति-रिवाज से तेरहवीं का आयोजन किया। यह कहानी बताती है कि प्रेम और वफादारी जाति या प्रजाति नहीं देखते — बस महसूस की जाती है

✍️ राकेश प्रजापति 

मध्य प्रदेश के दतिया जिले के भांडेर कस्बे की यह घटना सिर्फ एक पालतू कुत्ते के मरने की कहानी नहीं है, यह इंसान और जानवर के बीच सच्चे प्रेम, समर्पण और रिश्तों की गहराई का अद्भुत उदाहरण है।

दतिया जिले के भांडेर निवासी अंकी चौरसिया के घर में पाले गए कुत्ते ‘रॉकी’ की मौत के बाद जिस तरह पूरे विधि-विधान से अंतिम संस्कार और तेरहवीं का आयोजन किया गया, उसने यह साबित कर दिया कि संवेदनाएं किसी प्रजाति की मोहताज नहीं होतीं।

बारह वर्षों तक परिवार के सदस्य की तरह साथ निभाने वाला यह वफादार साथी जब चला गया तो घर का सन्नाटा, भरे हुए आंसू और यादों की गूंज सब कुछ मानो किसी इंसान की विदाई जैसा था। रॉकी के तेरहवीं भंडारे में वही भोजन बनाया गया जो उसे पसंद था — यह उस गहरे भाव का प्रतीक है जिसे शब्दों में नहीं बांधा जा सकता।

आज जब समाज में रिश्तों की डोर कमजोर पड़ रही है, लोग अपनों से दूरी बना रहे हैं, ऐसे में यह घटना एक आईना है — कि सच्चा प्रेम भाषा, धर्म या प्रजाति का मोहताज नहीं होता। यह घटना उस मानवीय करुणा का जीवंत चित्रण है, जो हमें बताती है कि “भावनाएं ही मनुष्य को मनुष्य बनाती हैं।”

रॉकी के मालिक ने अपने कर्मों से यह संदेश दिया है कि वफादारी, प्रेम और अपनापन जीवित प्राणियों की सबसे बड़ी पूजा है।
उनका यह कदम न केवल मार्मिक है बल्कि समाज के लिए भी प्रेरक — क्योंकि यह हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम अपने बीच मौजूद इंसानों के प्रति भी इतनी ही संवेदना रखते हैं?

कहने को तो रॉकी एक कुत्ता था, लेकिन जिसने उसे जाना — उसके लिए वह घर का प्रहरी, साथी और परिवार का सदस्य था।
उसके जाने के बाद जो शोक, श्रद्धांजलि और तेरहवीं का आयोजन हुआ — वह प्रेम का वह अध्याय है जिसे समय मिटा नहीं सकता।

नमन — एक जीव, जिसने निःशब्द रहकर भी इंसानियत का असली अर्थ सिखाया।