लगभग 20 साल बाद मिला नियमित प्राचार्य ..

“23 साल की सत्ता, फिर भी अनाथ शिक्षा संस्थान! आखिर शर्म किसे आनी चाहिए ?”

✍️ संपादकीय राकेश प्रजापति

छिंदवाड़ा की आईटीआई में लगभग 20 साल बाद नियमित प्राचार्यों की पोस्टिंग हुई — यह सुनकर गर्व नहीं, बल्कि अफसोस होता है। दो दशक तक प्रदेश की तकनीकी शिक्षा संस्थाएं प्रभारियों के भरोसे चलती रहीं, और सरकारें मूकदर्शक बनी रहीं। यह केवल एक संस्थान की नहीं, बल्कि पूरे शिक्षा तंत्र की गहरी विफलता की कहानी है।

प्रदेश में लगभग 23 वर्षों से भाजपा की सरकार है। इतने लंबे शासनकाल में यदि तकनीकी शिक्षा जैसी आधारभूत व्यवस्था अब तक “स्थायी नेतृत्व” से वंचित रही, तो यह सीधे-सीधे शासन की घोर लापरवाही और नीतिगत दिवालियापन को दर्शाता है। विभागीय मंत्री हों या स्थानीय जनप्रतिनिधि — सबने इस उपेक्षा को देखकर भी मौन साधे रखा। यह मौन, अपराध से कम नहीं।

छिंदवाड़ा सहित प्रदेशभर के आईटीआई संस्थानों में बच्चों का भविष्य प्रभारियों के भरोसे ताश के पत्तों की तरह हिलता रहा। न तो समय पर प्रशिक्षक मिले, न उपकरणों का रखरखाव, और न ही गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण। अब जाकर नियमित प्राचार्य नियुक्त किए गए हैं, तो सवाल यह उठता है कि इतने सालों तक सरकारें क्या कर रही थीं ?

विभागीय मंत्री और शासन के वरिष्ठ अधिकारी, विशेष रूप से वे IAS अफसर जो इस विभाग की बागडोर संभालते हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि उनका दायित्व सिर्फ़ फाइलें खिसकाना नहीं है। यह उनकी नाकामी है कि सरकारों को उन्होंने कभी सच का आईना नहीं दिखाया। तकनीकी शिक्षा जैसे संवेदनशील विभाग को उपेक्षा और भ्रष्टाचार की सड़ांध में डूबने दिया गया।

शर्म तो उन नेताओं को भी आनी चाहिए जो जनता के वोटों से विधानसभा और संसद तक पहुँचकर भी अपने ही क्षेत्र के शिक्षा संस्थानों को “अनाथ” बनते देखते रहे।
क्या यही है “सशक्त मध्यप्रदेश” की तस्वीर ?

बच्चों का भविष्य, युवाओं का करियर और शिक्षा की गुणवत्ता — सब कुछ इस प्रशासनिक उदासीनता की भेंट चढ़ गया है। अब वक्त है कि इस लापरवाही की जवाबदेही तय हो। सिर्फ़ पोस्टिंग कर देने से शिक्षा सुधरेगी नहीं; जरूरत है राजनीतिक इच्छा शक्ति, जवाबदेह अफसरशाही और पारदर्शी सिस्टम की।

वरना आने वाली पीढ़ियां सिर्फ़ यही कहेंगी — “23 साल सत्ता में रहे, पर शिक्षा को संभाल न सके !”