कफ़ सिरप कांड के असली कातिल अब भी आज़ाद है ..

⚖️ ” रंगनाथन गिरफ्तार हुआ… पर असली कातिल अब भी आज़ाद है !”

विश्लेषणात्मक टिप्पणी : राकेश प्रजापति 

छिंदवाड़ा, परासिया और आसपास के इलाकों में जो 23 मासूमों की लाशें गिरी हैं, वह किसी एक “जहरीले सिरप” की कहानी नहीं — यह पूरे स्वास्थ्य तंत्र के सड़ चुके ज़मीर का बयान है।

कल SIT ने ColdRef कफ सिरप निर्माता कंपनी “श्रीसन फार्मा” के डायरेक्टर गोविंदम रंगनाथन को तमिलनाडु से गिरफ्तार कर परासिया कोर्ट में पेश किया। न्यायालय ने 10 दिन की पुलिस रिमांड मंजूर की — लेकिन अब सवाल ये है कि क्या केवल रंगनाथन को जेल में डाल देने से उन 23 मासूमों की आत्मा को न्याय मिल जाएगा ?

सरकार ने उसे “मौत का सौदागर”, “मासूमों का हत्यारा” बता दिया।
पर जब अदालत में रंगनाथन ने कहा —

“मेरी दवाइयां पाँच राज्यों में सप्लाई होती हैं, मौतें सिर्फ छिंदवाड़ा में ही क्यों हुईं ? ”

तो यह सवाल सिर्फ अदालत के लिए नहीं, पूरे प्रदेश के लिए गूंज गया।
अगर यही सिरप महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान और तमिलनाडु में भी भेजा गया, तो फिर मौतें सिर्फ मध्यप्रदेश में क्यों ?
क्या यहाँ “दवा” ज़हरीली थी या इलाज में ज़हर था ?

👉 क्या किसी डॉक्टर ने गलत दवा दी ?
👉 क्या बच्चों का सही समय पर इलाज नहीं हुआ ?
👉 क्या प्रशासन ने देर से कार्रवाई की ?
👉 और सबसे बड़ा सवाल — क्या मौतों का ठीकरा कंपनी पर फोड़कर स्वास्थ्य विभाग अपनी नाकामी छिपाना चाहता है ?

जानकारों के मुताबिक परासिया विकासखंड के अनेक प्राइवेट अस्पतालों में सर्दी – खांसी जैसे मामूली बीमारी में बच्चों को कफ सिरप डाक्टर के दवा लिखने पर परिजनों ने अपने हाथों से पिलाया। बच्चों की एक एक करने मौत होती रही परन्तु स्वास्थ्य विभाग ओर जिला प्रशासन ने संदिग्ध मौतों पर पोस्टमार्टम तक कराने की जरूरत भी समझी , लगातार मीडिया में इसे लेकर सवाल उठाए जाने पर इस निकृष्ट व्यवस्था ने 17 वी बच्चे की मौत पर कब्र से निकालकर पोस्टमार्टम कराया गया। पहले पोस्टमार्टम तक की जहमत नहीं उठाई — ताकि “सिस्टम” के गुनाह सामने न आएं।

अगर रंगनाथन दोषी है तो उसे कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए। लेकिन अगर मौतें प्रशासनिक लापरवाही, गलत निदान या डॉक्टरों की गैरजिम्मेदारी से हुई हैं — तो फिर सिर्फ एक “निर्माता” को फांसी पर चढ़ाना न्याय नहीं, राजनीतिक दिखावा है।
यह केस अब एक दवा की बोतल से कहीं आगे निकल चुका है।

यह सवाल है —
👉 क्या हम एक बार फिर बलि का बकरा खोज रहे हैं ?
👉 क्या मासूमों की मौत को फाइलों में बंद करने की तैयारी हो चुकी है ?
अगर सरकार वाकई ईमानदार है, तो उसे अब सिर्फ “रंगनाथन की रिमांड” से आगे बढ़कर पूरे स्वास्थ्य तंत्र की रिमांड लेनी होगी।
क्योंकि ज़हर बोतल में नहीं था — ज़हर उस सिस्टम में है, जिसने 23 नन्हें चेहरों की मुस्कान छीन ली।