🩸 संपादकीय विशेष….
” राकेश प्रजापति “
माँ की गोद में बुझते दीये — छिंदवाड़ा की वो रात जो कभी नहीं भूलेगा भारत !
दवा नहीं, सिस्टम ने मारे हैं हमारे बच्चे!
छिंदवाड़ा के वे घर, जहाँ कभी बच्चों की किलकारियाँ गूंजती थीं, आज सन्नाटा बोल रहा है।
11 मासूम अब सिर्फ तस्वीरों में मुस्कुरा रहे हैं, और माँ की गोद अब सवाल बन चुकी है — “मेरे बच्चे को दवा दी या ज़हर ?”
💊 इलाज के नाम पर मौत – एक संगठित अपराध की गंध
छिंदवाड़ा की त्रासदी ने पूरे प्रदेश को झकझोर दिया।
कोल्ड्रिफ कफ सिरप — जिसे राहत देना था, वही जहरीला अमृत बन गया।
48.6% डाइएथिलीन ग्लाइकॉल जैसी विषैली रासायनिक मात्रा से
भरे इस सिरप ने बच्चों की किडनी को तबाह कर दिया।
माएँ सोचती रहीं कि बच्चा ठीक होगा,
पर दवा ने रोग नहीं, उसकी साँसें खत्म कर दीं।
11 मासूमों की मौत और 12 अन्य बच्चों की हालत अब भी गंभीर है — 8 नागपुर में और 4 जिला अस्पताल छिंदवाड़ा में जीवन से जूझ रहे हैं।
⚡ जाँच नहीं, जवाब चाहिए !
सरकार ने अब जाकर कार्रवाई की —
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने पूरे प्रदेश में सिरप पर पूर्ण प्रतिबंध,
छापामारी के आदेश, और दोषियों को सख्त सजा देने की घोषणा की है। पर सवाल यही है —
👉 जब दवा अमानक थी, तो यह बाजार तक पहुँची कैसे?
👉 निरीक्षण कहाँ था?
👉 जिला प्रशासन ने शुरुआती मौतों पर पोस्टमार्टम कराने की जहमत क्यों नहीं उठाई?
जब कोई मृत शरीर जांच के बिना दफन हो जाए,
तो जिम्मेदारी भी वहीं दफन हो जाती है।
😢 माँ की आँखों से गिरते आँसू – प्रशासन की नींद तोड़ेंगे या नहीं?
एक माँ ने कहा —
“वो सिरप देने के बाद मेरा लाल धीरे-धीरे ठंडा होता गया,
मैंने उसे सीने से लगाया, पर उसने कहा ही नहीं — माँ।”
यह सिर्फ एक माँ का बयान नहीं,
बल्कि इस व्यवस्था की लाश पर रखा हुआ सच है।
4 लाख की आर्थिक सहायता इन आँसुओं का मूल्य नहीं।
राज्य सरकार इलाज का खर्च उठा रही है, पर क्या कोई बचा हुआ विश्वास लौटा सकती है?
🧪 जाँच में सच – ज़हर से भरा था ‘इलाज’
तमिलनाडु की सरकारी रिपोर्ट ने कोल्ड्रिफ सिरप को
“नॉट ऑफ स्टैंडर्ड क्वालिटी” (NSQ) घोषित किया है।
इसमें पाई गई 48.6% डाइएथिलीन ग्लाइकॉल की मात्रा
इतनी है कि एक बूंद भी बच्चों के शरीर के लिए जानलेवा साबित होती है।
अब सवाल यह है —
क्या ड्रग निरीक्षक, खाद्य विभाग और स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारी सब मिलकर इस अपराध के मौन साझेदार नहीं बने ?
🔥 यह हादसा नहीं — यह हत्या है!
जब सरकारी तंत्र रिपोर्टों का इंतज़ार करता रहा,
तब बच्चे तड़प-तड़प कर दम तोड़ते रहे।
जब तक फाइलें चलीं,
माँ की गोद में जीवन बुझ गया।
यह लापरवाही नहीं, सिस्टम की साजिशी नींद है — जिसने 11 मासूमों की जान ले ली।
तीन बच्चे एक–एक कर दम तोड़ चुके थे और जिला कलेक्टर, प्रशासन तामिया मैराथन करवा रहा था , धावकों के एक–एक कदमों की मानिंद मौत बच्चों को निगलती रही थी और जिला प्रशासन सुहाने मौसम में खुशियां मना रहा था , इनकी निर्लज्जता तामिया में उठ रहे कोहरे की आड़ में मौत की पदचापों से छिप नहीं सकती है ?
छिंदवाड़ा, अब पूरा देश तुम्हारी आँखों में देख रहा है
आज छिंदवाड़ा सिर्फ एक जिला नहीं,
बल्कि पूरे देश की अंतरात्मा का आईना है।
हर माँ, हर पिता अब डरता है —कि कहीं उनके बच्चे की दवा ही उसकी मौत न बन जाए।
यह मामला सिर्फ एक जांच नहीं,
बल्कि पूरे दवा-प्रणाली की पुनर्परीक्षा का समय है।
जब जिम्मेदारी सोती है, तब मासूम मरते हैं
11 छोटे-छोटे ताबूत,
हर एक के साथ एक सवाल –“अगर यही विकास है, तो इंसानियत कहाँ है ? ”
इन मौतों का जवाब फाइल नहीं दे सकती,
उसे जिम्मेदारी की अदालत में सुनाया जाना चाहिए।
दोषियों को सख्त सजा मिले,
ताकि कोई और माँ दवा देते हुए अपने बच्चे की जान न गंवाए।
“यह सिरप नहीं, ज़हर था — जिसने 11 किलकारियाँ हमेशा के लिए खामोश कर दीं।”