भूमाफिया का खेल और प्रशासनिक चुप्पी ..

आदिवासी परिवार ठगा गया, कोर्ट पहुंचा मामला , यदि जिला प्रशासन अब भी मूकदर्शक बना रहा तो यह साफ संदेश जाएगा कि छिंदवाड़ा में भूमाफिया प्रशासन की छत्रछाया में फल-फूल रहे हैं और आदिवासी अपने ही घर में बेघर बनाए जा रहे हैं।

आदिवासी समाज की जमीन पर गिद्ध नजरें और प्रशासन की चुप्पी—यह गठजोड़ अब खुलेआम आदिवासियों के हक पर डाका डाल रहा है। ताजा मामला छिंदवाड़ा का है, जहां एक भूमाफिया ने 88 लाख में जमीन खरीदी, लेकिन भुगतान के नाम पर सिर्फ 50 लाख का चेक दिया, जो बाउंस हो गया। अब पीड़ित आदिवासी परिवार न्याय के लिए कोर्ट की चौखट पर है।

प्रशासन की मिलीभगत पर सवाल :-

जमीन का पंजीयन बिना पूरी राशि चुकाए कैसे संभव हुआ? यह सीधा सवाल जिला प्रशासन और पंजीयन विभाग पर उठता है। क्या उनकी मिलीभगत के बिना यह फर्जीवाड़ा हो सकता है? यही कारण है कि पीड़ित परिवार पिछले 15 महीनों से दर-दर भटक रहा है, लेकिन अब तक किसी जिम्मेदार पर कार्रवाई नहीं हुई।

कानूनी प्रावधान क्या कहते हैं :- 

आदिवासी भूमि की बिक्री और खरीद पर विशेष प्रतिबंध है। मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता 1959 (MP Land Revenue Code) की धारा 165(6) के अनुसार कोई भी आदिवासी अपनी कृषि भूमि गैर-आदिवासी को सीधे नहीं बेच सकता।

  • केवल कलेक्टर की अनुमति मिलने पर ही यह सौदा वैध होता है। अनुमति भी तभी दी जाती है जब यह साबित हो कि आदिवासी के पास जीवन-यापन के लिए पर्याप्त जमीन शेष रहेगी।

  • धारा 170-ख एवं 170-ग के तहत यदि गैर-आदिवासी ने नियमों को दरकिनार कर जमीन खरीदी है, तो कलेक्टर को अधिकार है कि भूमि को फिर से मूल आदिवासी मालिक को वापस लौटाए।

यानी साफ है कि जिस सौदे की आड़ में भूमाफिया ने ठगी की, वह कानूनी रूप से भी संदेहास्पद है। प्रशासन यदि चाहे, तो सिर्फ इन धाराओं के आधार पर ही पूरी जमीन तुरंत आदिवासी परिवार को वापस दिला सकता है।

आदिवासी परिवार की पीड़ा

परिवार कह रहा है कि उसने अपनी पुश्तैनी जमीन मजबूरी में बेची, लेकिन न तो पूरा भुगतान मिला और न ही प्रशासन से मदद। भूमाफिया आज भी जमीन पर गिद्ध द्रष्टि है और पीड़ित परिवार न्यायालय की लड़ाई लड़ने को मजबूर।

अब जवाबदेही तय होनी चाहिए

छिंदवाड़ा आदिवासी अंचल है। यदि यहां के आदिवासियों की जमीनें ही असुरक्षित रहेंगी तो यह सिर्फ कानून और व्यवस्था की विफलता नहीं बल्कि सामाजिक अन्याय भी है। जिला प्रशासन को चाहिए कि—

  1. भूमाफिया पर ठगी और धोखाधड़ी का आपराधिक मामला दर्ज हो।

  2. पंजीयन विभाग और राजस्व अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जाए।

  3. धारा 170-ग के तहत जमीन तुरंत आदिवासी परिवार को लौटाई जाए।

जब तक भूमाफियाओं पर सख्त कार्रवाई नहीं होगी, तब तक यह गंदा खेल यूं ही जारी रहेगा और आदिवासी परिवार ठगे जाते रहेंगे।