वर्दी पर दाग़ -किया विभाग को शर्मसार

 वर्दी पर दाग़ — मप्र पुलिस की गिरती साख, लूट, जुआ और चोरी ने किया विभाग को शर्मसार

✍️ संपादकीय : राकेश प्रजापति 

कभी “जनसेवा” और “अनुशासन” का पर्याय रही मध्यप्रदेश पुलिस आज खुद अपराध और शर्मिंदगी का पर्याय बन चुकी है।
ताज़ा घटना में पीएचक्यू में पदस्थ महिला डीएसपी कल्पना रघुवंशी पर अपनी ही सहेली के घर से दो लाख रुपये और मोबाइल चोरी करने का आरोप लगा है।
सीसीटीवी फुटेज में वह घर में प्रवेश करती और हाथ में नोटों की गड्डी लेकर निकलती नजर आईं।
पुलिस ने मोबाइल तो बरामद कर लिया, लेकिन पैसे गायब हैं और आरोपी डीएसपी फरार।
यह दृश्य केवल एक महिला अफसर की नहीं, बल्कि मप्र पुलिस की पूरी नैतिकता की गिरावट की झलक है।

जब पुलिस ही अपराधी बने, तो जनता किससे न्याय मांगे ?

जहांगीराबाद थाने में दर्ज यह मामला उस वर्दी के पवित्र अर्थ पर करारा तमाचा है,
जो कभी कानून, सेवा और त्याग का प्रतीक मानी जाती थी।
अब यह वर्दी भ्रष्टाचार, वसूली, अपराध और नैतिक पतन का प्रतीक बन गई है।

यह अकेला मामला नहीं है —
पिछले एक महीने में मध्यप्रदेश पुलिस के भीतर से जो “खबरें” निकली हैं,
वे यह साबित करती हैं कि विभाग अब चरित्रहीनता के गर्त में जा चुका है।

सिवनी में पुलिसिया लूट – जनता के पैसे पर डाका

सिवनी ज़िले में हाल ही में हवाल के पैसों की पुलिसिया लूट ने पूरे विभाग को शर्मसार कर दिया।
कथित रूप से जब्त किए गए लाखों रुपये पुलिसकर्मियों के बीच बंट गए —
और बाद में विभागीय कार्रवाई के डर से कागजी हेरफेर से मामला दबा दिया गया।
सोचिए, जो पुलिस अपराधियों से जनता का पैसा छुड़ाने का दावा करती है,
वही खुद उस हवाल के पैसे पर डाका डाल रही है।

यह घटना केवल लूट नहीं,
भरोसे की हत्या है।

बालाघाट का हवलदार – जनता का पैसा जुएं में हार गया !

बालाघाट में तो पुलिस की नैतिकता की सीमा ही टूट गई —
एक हवलदार ने जनता के लिए जमा सरकारी रकम जुएं के अड्डे में दांव पर लगा दी!
वह न केवल वर्दी में बैठकर कानून तोड़ रहा था,
बल्कि जनता के खून-पसीने की कमाई जुएं में हारकर भाग खड़ा हुआ।

अब सवाल यह है —
क्या मप्र पुलिस का प्रशिक्षण “सेवा” के लिए होता है,
या “स्वार्थ” और “स्वर्ण” के लिए?

यह अलग-अलग घटनाएँ नहीं — यह पूरी व्यवस्था का सड़ना है

भोपाल की डीएसपी की चोरी,
सिवनी की हवाला लूट,
बालाघाट का जुआ,
ये सब किसी एक जिले की नहीं,
पूरे पुलिस सिस्टम की बीमारी के लक्षण हैं।

यह बीमारी अब “अंदर” तक फैल चुकी है —
जहाँ वर्दी सम्मान नहीं,
सत्ता का कवच और अवैध कमाई का हथियार बन चुकी है।

जनता पूछ रही है — “जब पुलिस ही अपराधी हो जाए, तो रिपोर्ट कहाँ लिखाएँ ?”

सवाल अब लगभग हर जिले में गूंज रहा है —

“किस पर भरोसा करें?”
“जिसके पास कानून का डंडा है, वही जनता की जेब काट रहा है!”

जनता अब थानों में जाने से डरती है,
क्योंकि उन्हें अपराधियों से नहीं,
अपराधी बन चुके पुलिसवालों से डर लगने लगा है।

अफसरशाही का संरक्षण – जवाबदेही शून्य

सबसे बड़ा अपराध यह नहीं कि कुछ पुलिसकर्मी भ्रष्ट हो गए,
बल्कि यह है कि वरिष्ठ अधिकारियों ने सब कुछ देखकर भी चुप्पी साध ली।
किसी को सस्पेंड किया, किसी को लाइन अटैच किया —
और कुछ दिनों में वही चेहरे किसी नए जिले में फिर से तैनात।

यह “सिस्टम की गलती” नहीं,
यह सिस्टम का चरित्र बन चुका है।

मप्र पुलिस की शर्मनाक साख — राजधानी से लेकर सीमाओं तक सड़ांध

बीते दिनों भिंड में रिश्वतखोर टीआई का वीडियो वायरल हुआ,
रीवा में थाने में महिला से दुर्व्यवहार,
इंदौर में पुलिसकर्मी की शराब पार्टी,
मुरैना में चोरों से सांठगांठ —
हर जिले की अपनी “कहानी” है, पर नतीजा एक ही —
पुलिस की साख मिट्टी में।

भोपाल की महिला डीएसपी का कांड तो केवल “ट्रिगर पॉइंट” है —
इससे यह खुल गया है कि अब मप्र पुलिस का पतन सिर्फ नीचे नहीं, ऊपर तक पहुँच चुका है।

अब कार्रवाई नहीं, सफाई की जरूरत है

मप्र पुलिस को अब सिर्फ जांच या सस्पेंशन से नहीं,
चरित्र शुद्धिकरण अभियान से गुजरना होगा।
अगर सरकार और पुलिस मुख्यालय ने अब भी कठोर कदम नहीं उठाए,
तो जनता के मन से पुलिस पर भरोसा सदा के लिए खत्म हो जाएगा।

निष्कर्ष :

वर्दी पहनना जिम्मेदारी है,
पर आज वह जिम्मेदारी लालच, दबाव और दंभ में डूब चुकी है।

मध्यप्रदेश पुलिस के लिए यह समय बयान देने का नहीं,
आत्मचिंतन और शुद्धिकरण का समय है।

अगर पुलिस महकमा इस गंदगी को खुद साफ नहीं करेगा,
तो जनता सड़कों पर उतरकर जवाब मांगेगी —
क्योंकि कानून जनता के लिए बना है,
और जनता के ऊपर नहीं, जनता के साथ खड़ा होना पुलिस का धर्म है।