श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 125 वी कड़ी.. 

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता  का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।
इस दिशा में डॉ. बुधौलिया ने स्तुत्य कार्य किया। गीता का छंदमय हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करके वह हिंदी साहित्य को दरअसल एक धरोहर सौंप गए।
आज वह हमारे बीच डॉ. बुधोलिया सशरीर भले नहीं हैं, लेकिन उनकी यह अमर कृति योगों युगों तक हिंदी साहित्य के पाठकों को अनुप्राणित करती रहेगी ! उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 125 वी कड़ी.. 

सत्रहवाँ अध्याय : श्रद्धात्रय-विभाग योग (श्रद्धा के तीन भेद)

 

जो तीन पहर पहिले का हो, कहलाता जो भोजन बासी,

उच्छिष्ट कि जो दूषित होवे, जूठा भोजन जो कहलाता।

रस रहित शुष्क अपवित्र रहा, दुर्गन्ध कि हो जिससे आती,

वह रही तामसी सामग्री, तामसी मनुज को वह भाती।-10

 

यज्ञों में सात्विक यज्ञ वही, हो शास्त्र विहित जिसका पालन,

फल की इच्छा के बिन जिसका, कर्तव्य भाव से परिपालन।

यह भाव कि है कर्तव्य यज्ञ, मन में ऐसा निश्चय करके,

निस्वार्थ किया जाता जिसको, रे सात्विक यज्ञ उसे कहते।-11

 

उद्देश्य प्राप्ति के लिये मगर, जब कोई यज्ञ किया जाता,

मन की विनम्रता के बदले, जब मनुज गर्व ही दर्शाता।

जुड़ता है दम्भाचरण जहां, लौकिक सारा परिवेश रहे,

वह यज्ञ राजसी है अर्जुन, जिसमें पाने की चाह रहे।-12

 

जिसमें न शास्त्र विधि का पालन, या विधि विरूद्ध जो रचा गया,

वैदिक मन्त्रों के बिन जिसका, पूजन अर्चन हो किया गया।

बिन दान दक्षिणा या प्रसाद, हो गया समापन रे जिसका,

वह यज्ञ तामसी है अर्जुन, जो श्रद्धा शून्य विफल रहता।-13

 

अर्जुन शरीर संबंधी तप, पहिला परमेश्वर का पूजन,

फिर देव ब्राहाण गुरूओं का, अरू मात पिता का पग वंदन।

अभिवादन ज्ञानी पुरुषों का, अरू ब्रह्मचर्य का परिपालन,

शुचिता का भाव सरलता का, हो भाव अहिंसा का धारण।-14    क्रमशः ….