श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 124 वी कड़ी.. 

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता  का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।
इस दिशा में डॉ. बुधौलिया ने स्तुत्य कार्य किया। गीता का छंदमय हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करके वह हिंदी साहित्य को दरअसल एक धरोहर सौंप गए।
आज वह हमारे बीच डॉ. बुधोलिया सशरीर भले नहीं हैं, लेकिन उनकी यह अमर कृति योगों युगों तक हिंदी साहित्य के पाठकों को अनुप्राणित करती रहेगी ! उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 124 वी कड़ी.. 

सत्रहवाँ अध्याय : श्रद्धात्रय-विभाग योग (श्रद्धा के तीन भेद)

 

जो वेद विरूद्ध मनोकल्पित तप के नूतन विधान रचते,

उनका स्वभाव आसुरी रहा वे हितकर कार्य नहीं करते।

वे दंभ दर्प से भरे मनुज, करते हैं वास रजोगुण में,

आसक्ति कामना लिये हुये, वे भ्रमित रहे अपने बल में।-5

 

वे अहंकार के वशीभूत, तप से अपना तन सुखा चले,

अविवेकी वे इस भांति मुझे, पहुँचाते कष्ट न यह समझे।

मुझ अनतर्यामी प्रभु को जो, दुख देने वाले असुर रहे,

वे शास्त्रों के विपरीत चले, वे नहीं बन्धनों से उबरे ।-6

 

गुण प्रकृति भेद से भोजन भी, होता है अलग-अलग सबका,

यह तीन तरह का होता है, जैसी रूचि वैसा वह रूचता।

वैसी ही यज्ञ दान तप के होते हैं तीन भेद अर्जुन,

आश्रित गुण के आचार रहे, उनके रहस्य को भी अब सुन।-7

 

जो आयु बढ़ाने वाले हो, हो अन्तकरण शुद्ध जिससे,

बलबुद्धि करे सुखदायक जो, आरोग्य प्राप्त होवे जिससे ।

रसमय जो स्निग्ध सुस्थिर जो, हृदय को जो उमंगित करते,

आहार घटक है सात्विक ये, सात्विक जन को प्रिय लगते।-8

 

तो तिक्त स्वाद के खट्टे हो, कडुए नमकीन गरम तीखे,

रूखें जो रहे दाहकारी, जो ग्राहक होते हैं जी के।

जो रोग-शोक के कारण हो, जो भोज्य पदार्थ दुखी करते,

वे घटक राजसी भोजन के, राजस मनुष्य को प्रिय लगते।-9    क्रमशः ….