श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 103 वी कड़ी.. 

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता  का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।
इस दिशा में डॉ. बुधौलिया ने स्तुत्य कार्य किया। गीता का छंदमय हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करके वह हिंदी साहित्य को दरअसल एक धरोहर सौंप गए।
आज वह हमारे बीच डॉ. बुधोलिया सशरीर भले नहीं हैं, लेकिन उनकी यह अमर कृति योगों युगों तक हिंदी साहित्य के पाठकों को अनुप्राणित करती रहेगी ! उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 103 वी कड़ी.. 

तेरहवाँ अध्याय : प्रकति-पुरुष-विवेक योग

अर्जुन उवाच :-

अर्जुन ने कहा कि हे केशव, कर कृपा मुझे यह भी कहिये,

क्या प्रकृति रही क्या पुरुष रहा क्षेत्रज क्षेत्र क्या यह कहिये ?

किसको कहते हैं, ज्ञान तत्व, प्रभु इसका रहा प्रयोजन क्या,

जानू इसके बारे में कुछ, मन में जागी यह अभिलाषा।

श्री भगवानुवाच :-

केशव बोले कौन्तेय सुनो, जो पुंज इन्द्रियों का शरीर,

कहते हैं क्षेत्र इसे अर्जुन, जिसमें रहता है बद्धजीव।

यह कार्यक्षेत्र जीवात्मा का, जिसने इस सच को पहिचाना,

कहलाता है क्षेत्रज्ञ वही, तन क्षेत्र तथ्य जिसने जाना।-1

 

क्षेत्रों का याने देहों का, जो जानकार क्षेत्रज्ञ वही,

मैं सब देहों का जान रहा, मैं ही अर्जुन क्षेत्रज्ञ सही।

जो क्षेत्र और क्षेत्रज्ञों को, इस तरह जानता ज्ञान रहा,

ऐसा मेरा है मत अर्जुन, आत्मा संग मेरा वास रहा।-2

 

जिसको कहते हैं क्षेत्र पार्थ, उसका स्वरूप होता कैसा?

इसमें विकार क्या केसे है, क्या हेतु प्रयोजन है कैसा?

अरू जो क्षेत्रज्ञ रहा कैसा, उसका स्वरूप कैसा होता ?

कैसा प्रभाव होता उसका यह सब अब मैं तुझसे कहता।-3

जीवात्मा परमात्मा अभेद, या इनमें कोई भेद रहा,

तत्वज्ञ ज्ञानियों ने इस पर, नाना रूपों में बहुत कहा।

वैदिक मन्त्रों में वर्णित ये, वेदान्त सूत्र में व्याख्यायित,

सिद्धांत कार्य कारण का जो, ऋषियों द्वारा यह प्रतिपादित।-4

 

पृथ्वी, जल, अग्नि, पवन, अम्बर, हैं अहंकार के प्रगट रूप,

इनसे है रचित जगत सारा, जग कार्य कि कारण महाभूत।

इनके सिवाय मन,, बुद्धि, चित्त, इन्द्रियाँ समग्र तन्मात्राएँ,

चौबीस तत्व संघात करें, तन में विकार नव उपजायें।-5    क्रमशः…