रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।दुष्कृती रहे उन असुरो का, करता मर्दन वे सकुल मिटे।-8
अवतारों का हूँ मैं उद्गम, अवतार दिव्य होता मेरा.
जो कर्म करूँ वे दिव्य रहे, परितोष जनों का हित मेरा।
यह तत्व जानता जो ज्ञानी, वह बाद मरण के जन्म न ले,
वह मुक्त हुआ मुझको पाता, उसको मम भगवद्दाम मिले।-9
भय, राग, क्रोध से मुक्त हुआ, मुझमे तन्मय जो मुझे भजे,
वह दिव्य रूप मेरा देखे, मुझको जाने मुझको समझे।
ऐसे ज्ञानी ज्ञान बहुतेरे, पहिले पवित्र हो चुके पार्थ
उन सबको मेरा दिव्य प्रेम, इसके पहिले हो चुका प्राप्त।-10
जो जैसा भाव लिये मन मे, आता है मेरी शरण पार्थ,
उसको मैं वैसा फल देता, अनुरूप उसी के मैं यथार्थ।
मैं प्राणिमात्र का आश्रय हूँ, सब मेरे ही पथ पर चलते,
मैं विषय सभी के मन का हूँ, अनुगमन सभी उसका करते।-11
संसार, यहाँ के मनुज सभी, करते हैं कर्म सकाम सदा,
यज्ञों का करके आयोजन, देवों को करे प्रसन्न सदा,
उनको उसका फल शीघ्र मिले, पूरी होती हर अभिलाषा,
जिसकी जैसे अनुरक्ति रही, अनुरूप उसी के फल पाता।-12 क्रमशः…