श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 39वी कड़ी..   

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता  का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।
इस दिशा में डॉ. बुधौलिया ने स्तुत्य कार्य किया। गीता का छंदमय हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करके वह हिंदी साहित्य को दरअसल एक धरोहर सौंप गए।
आज वह हमारे बीच डॉ. बुधोलिया सशरीर भले नहीं हैं, लेकिन उनकी यह अमर कृति योगों युगों तक हिंदी साहित्य के पाठकों को अनुप्राणित करती रहेगी ! उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 39वी कड़ी..                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                           चौथा अध्याय  :- ज्ञान-कर्म-सन्यास योग 

श्री भगवानुवाच :-

भगवान कृष्ण ने कहा प्रथम, उपदेश योग का अविनाशी,

मैने जिनको था दिया रहे, वे विवस्मान रवि अधिष्ठाती।

वैवस्वत मनु ने फिर उनसे, इस दिव्य ज्ञान को प्राप्त किया,

मनु ने इक्ष्वाकु नृपति को यह, अविनाशी ज्ञान प्रदान किया।-1

 

शिष्यों की परम्परा द्वारा, यह दिव्य ज्ञान चलता आया,

राजर्षि बचाते इसे रहे, विज्ञान न पर बचने पाया।

हो गई विखण्डित परम्परा, तो लुप्तप्राय हो गया ज्ञान,

कालान्तर में सब लुप्त हुआ, कुछ भी बचा न विज्ञान ज्ञान।-2

 

प्राचीन योग वह ही अर्जुन, तेरे प्रति मैंने आज कहा,

तू रहा अनन्य भक्त मेरा, प्रिय सखा रहा, इसलिए कहा।

कर पायेगा तू हृदयंगम, यह दिव्य ज्ञान विज्ञान भरा,

इसका रहस्य समझेगा तू, जो औरों को अज्ञात रहा।-3

अर्जुन उवाच :-

अर्जुन ने कहा कि मधुसूदन, जन्में है आप इसी युग में,

विवस्वत रवि प्राचीन रहे, अति अन्तराल दोनों युगों में।

कैसे समझें वे आप रहे, रवि को जिनने उपदेश दिया,

इस वर्तमान में पहिले भी, क्या देव आपने जन्म लिया ?-4  क्रमशः…