रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।तो भी यह निश्चित रहा पार्थ, तेरा न अहित होने वाला,
तू ज्ञानरूप तरणी पाकर, संतरण सिंधु का कर लेगा,
भव दुख सागर के पार सहज, तू ज्ञान प्राप्ति से उतरेगा।-36
जिस तरह प्रज्जवलित अग्नि सदा, ईंधन को भस्म किया करती,
उस तरह जगत दुःख भव-बंधन, ज्ञानाग्नि दग्ध तत्क्षण करती।
कर्मो के फल सब जल जाते, ईंधन जैसे जब अग्नि जले,
शुभ अशुभ कर्म फल ये दोनों, ज्ञानानल में पड़ भस्म हुए।-37
बढ़कर न ज्ञान से पावन कुछ, है ज्ञान परम प्रभु विष्णु पार्थ,
होता है जब परिपक्व योग, तब प्राप्त ज्ञान होता यथार्थ।
जब यथा समय यह ज्ञान मिले, निज रूप मनुज पहिचान सके,
तब आत्मरूप के फल रस का, आस्वाद मिले, रस मनुज चखे।-38
जो श्रद्धावान पुरुष होता, जिसकी इन्द्रियाँ संयमित रही,
जिज्ञासु ज्ञान का जो तत्पर, चित-वृतिज्ञान में लीन रही।
अतिशीघ्र ‘सरूशान्ति मिलती उसको, वह प्राप्त ज्ञान को हो जाता,
श्रद्धा विश्वास अडिग जिसका, वह पुरुष ज्ञान को पा जाता।-39 क्रमशः…