आवासीय विद्यालयों में बच्चों के भोजन पर डाका — जिम्मेदार संस्था की लापरवाही ने खोली भ्रष्टाचार की परतें !
छिंदवाड़ा// जिले के ग्रामीण अंचलों में स्थित आवासीय विद्यालयों में बच्चों के लिए संचालित भोजन व्यवस्था एक बार फिर सवालों के घेरे में है। राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के सलाहकार प्रकाश उईके द्वारा बिछुआ सिंगरदीप आवासीय विद्यालय में किए गए औचक निरीक्षण ने, न केवल प्रबंधन की पोल खोली, बल्कि यह भी उजागर कर दिया कि “गरीब आदिवासी बच्चों की थाली पर अफसरशाही और ठेकेदार माफिया का पेट पल रहा है।”
सुबह का खाना बच्चों को शाम में परोसा गया !
निरीक्षण दल के सामने यह चौंकाने वाला तथ्य आया कि विद्यालय में बच्चों को सुबह का नाश्ता और भोजन शाम के समय परोसा जा रहा था। भोजन की गुणवत्ता इतनी खराब थी कि निरीक्षण टीम के सदस्य स्वयं हैरान रह गए।
खाने में पोषण का अभाव, साफ-सफाई का अभाव और वितरण में घोर अनियमितता स्पष्ट रूप से देखी गई। इससे यह प्रतीत हुआ कि बच्चों के भोजन में निर्धारित गुणवत्ता के मानक पूरी तरह से ताक पर रख दिए गए हैं।
भ्रष्टाचार का सिलसिला — हॉस्टल से जब्त हुए 13 सिलेंडर ..
निरीक्षण के दौरान टीम ने विद्यालय परिसर से 13 गैस सिलेंडर जब्त किए। बताया गया कि ये सिलेंडर खाना पकाने के नाम पर हॉस्टल में रखे गए थे, परंतु उनके उपयोग में भारी गड़बड़ी की आशंका जताई गई है। यह मामला सीधा खाद्य आपूर्ति और विद्यालय प्रबंधन के गठजोड़ की ओर इशारा करता है, जहां सरकारी संसाधनों का निजी उपयोग होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
बिजली नहीं, शिक्षक गायब — प्राचार्य “मौके पर नहीं”
निरीक्षण के दौरान यह भी सामने आया कि शिक्षकों के क्वार्टर में बिजली तक नहीं है, और विद्यालय के प्राचार्य आदेशों के बावजूद परिसर में निवास नहीं करते। मौके पर केवल सहायक स्टाफ मौजूद था। यह स्थिति दर्शाती है कि जिम्मेदार अधिकारी अपनी ड्यूटी से कोसों दूर हैं।
विद्यालय प्रशासन की यह गैर-जिम्मेदाराना प्रवृत्ति न केवल बच्चों के स्वास्थ्य बल्कि उनकी शिक्षा और सुरक्षा के लिए भी खतरा बन चुकी है।
प्रशासन की आंखों पर पट्टी — वातानुकूलित कमरों में बैठा तंत्र
जिला प्रशासन को यह समझना होगा कि केवल रिपोर्टों पर हस्ताक्षर कर देना निरीक्षण नहीं कहलाता। जब तक अधिकारी अपने वातानुकूलित कमरों से निकलकर धरातल पर जाकर व्यवस्था नहीं देखेंगे, तब तक यह भ्रष्टाचार यूं ही बच्चों की थाली में जहर परोसता रहेगा।
तहसीलदार अमित कुमार रिनाहिते , राजस्व निरीक्षक रामकृष्ण माटे और पटवारी सहित अन्य अधिकारी निरीक्षण के समय उपस्थित रहे — पर सवाल यह है कि क्या इनकी जिम्मेदारी केवल उपस्थिति तक सीमित रह गई है ?
कठोर कार्रवाई की दरकार ..
जिला कलेक्टर से अपेक्षा है कि इस मामले को केवल खानापूर्ति मानकर बंद न करें, बल्कि विद्यालय प्रबंधन, भोजन आपूर्तिकर्ता और संबंधित विभागीय अधिकारियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई करें। साथ ही, सभी आवासीय विद्यालयों की भोजन व्यवस्था का स्वतंत्र ऑडिट कराया जाए, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि “बच्चों के अधिकारों पर डाका डालने वाले” कौन हैं।
विभागीय सूत्रों के मुताबिक घटना को तीन दिन दिन हो चुके है परन्तु आज जिला मुख्यालय जनजातीय कार्य विभाग तक अभी तक कोई जानकारी नहीं आई है ! अब सवाल उठता है की इतनी बड़ी घटना पर किसी भी जिम्मेदार अधिकारीयों ने अभी तक संज्ञान क्यों नही लिया या फिर रिपोर्ट आने का इन्तजार किया जा रहा है ?
आवासीय विद्यालय वह स्थान हैं, जहां गरीब और आदिवासी बच्चों के सपनों को आकार दिया जाना चाहिए, न कि उनके हिस्से का भोजन भ्रष्टाचार की भेंट चढ़े।
प्रशासन को अब यह तय करना होगा कि वह बच्चों की थाली बचाएगा या अफसरशाही के पेट को भरने देगा।