छिंदवाड़ा की धरती पर आदिवासियों की पुश्तैनी जमीनें भूमाफियाओं की लूट की मंडी बन चुकी हैं। मयंक जैसे सफेदपोश ठग, प्रशासन की मिलीभगत से करोड़ों की हेराफेरी कर रहे हैं। 183 से अधिक आदिवासियों की जमीन गैर-आदिवासियों के नाम चढ़ा दी गई, कानून ताक पर रखकर ! अब सवाल यह है—क्या सरकार इस संगठित लूट पर पर्दा डालेगी या सच में न्याय करेगी ?
छिंदवाड़ा की धरती पर आदिवासियों की पुश्तैनी जमीनें अब भूमाफियाओं की लूट का सबसे आसान शिकार बन चुकी हैं। और सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि यह सब जिला प्रशासन की खुली मिलीभगत और संरक्षण के बिना संभव ही नहीं।
हाल ही का मामला भूमाफिया मयंक का है, जिसने 88 लाख में आदिवासी महिला की जमीन खरीदी, लेकिन सिर्फ 50 लाख का चेक थमाकर ठगी कर दी। चेक बाउंस हुआ, परिवार भटकता रहा, और जमीन उसके नाम पर पंजीकृत हो गई। सवाल उठता है — जब भुगतान अधूरा था तो पंजीयन कैसे हुआ? क्या यह जिला प्रशासन और पंजीयन कार्यालय की सीधी मिलीभगत का सबूत नहीं?
छिंदवाड़ा विधानसभा में गूंजा मामला :- यह कोई इकलौती घटना नहीं है। हाल ही में मध्यप्रदेश विधानसभा में यह मुद्दा उठा, जहां खुलासा हुआ कि छिंदवाड़ा जिले में 183 से अधिक आदिवासियों की जमीन का नामांतरण सामान्य लोगों के नाम कर दिया गया है। यह सीधे-सीधे कानून की धज्जियां उड़ाने और आदिवासियों के अधिकारों पर डाका डालने जैसा है।
मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता 1959 की धारा 165(6) साफ कहती है कि आदिवासी भूमि किसी गैर-आदिवासी को बेची ही नहीं जा सकती, जब तक कलेक्टर से अनुमति न मिले। धारा 170-ख और 170-ग में तो साफ प्रावधान है कि यदि गैर-आदिवासी ने नियमों को तोड़कर जमीन हड़पी है, तो उसे तुरंत आदिवासी मालिक को वापस किया जाए।
फिर सवाल है कि छिंदवाड़ा में इन धाराओं को किसने दफन कर दिया ?
प्रशासन की संदिग्ध भूमिका :- यह खुला रहस्य है कि छिंदवाड़ा में भूमाफिया और प्रशासन की जुगलबंदी ने आदिवासियों की जमीनें हड़पने का संगठित खेल रचा है। मयंक जैसे भूमाफिया सिर्फ मोहरे हैं, असली ताकत तो उन अफसरों और कर्मचारियों की है, जिन्होंने कानूनी प्रावधानों को दरकिनार कर फर्जी नामांतरण और पंजीयन किए।
आदिवासी बनाम सिस्टम :- आज हालत यह है कि आदिवासी परिवार अपनी पुश्तैनी जमीन गंवाकर दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। कोर्ट के चक्कर काट रहे हैं, नेताओं से गुहार लगा रहे हैं, लेकिन न प्रशासन सुनता है और न पुलिस। दूसरी ओर मयंक जैसे भूमाफिया खुलेआम जमीनों पर कब्जा कर करोड़ों की संपत्ति बना रहे हैं।
अब कार्रवाई जरूरी :- यदि सरकार और जिला प्रशासन अब भी हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा तो यह साफ हो जाएगा कि वे भी इस लूट के हिस्सेदार हैं।
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मयंक जैसे भूमाफियाओं पर धोखाधड़ी और ठगी का आपराधिक मामला दर्ज हो।
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पंजीयन और राजस्व विभाग के अफसरों की जवाबदेही तय हो।
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183 आदिवासियों की जमीनें तत्काल मूल मालिकों को वापस लौटाई जाएं।
अब सवाल :- क्या छिंदवाड़ा की आदिवासी जमीनें सिर्फ भूमाफियाओं और भ्रष्ट अफसरों के बीच की सौदेबाजी बनकर रह जाएंगी ? क्या सरकार विधानसभा में उठी आवाजों को अनसुना कर देगी ?
अगर नहीं, तो मयंक जैसे भूमाफिया और उनके संरक्षणकर्ताओं पर अब कड़ी कार्रवाई ही एकमात्र रास्ता है।