कोल माफियाओं के खिलाफ पहली बार गिरी गाज—अब रुके नहीं यह लड़ाई
छिंदवाडा // अंबाड़ा की बंद ओसीएम मोयारी खदान में दो गरीब युवकों की दर्दनाक मौत ने पूरे जिले को हिला दिया है। यह मौत महज़ हादसा नहीं बल्कि राजनीतिक संरक्षण प्राप्त कोल माफियाओं की करतूतों का नतीजा है। जिस तरह से जुन्नारदेव पुलिस ने एसपी अजय पांडे के निर्देशन में अंकित अग्रवाल और उसके गिरोह का भंडाफोड़ किया है, उसकी सर्वत्र प्रशंसा हो रही है। यह कार्रवाई कोयला चोरों के इतिहास में पहली बार हुई है जब सीधे “राजनीतिक ठस्से वाले” माफिया सलाखों के पीछे भेजे गए हों।
राजनीतिक संरक्षण की काली परछाई
परासिया विधायक सोहन वाल्मीकि का आरोप है कि कोयला और रेत तस्करों की जड़ें सत्ता के गलियारों तक फैली हुई हैं। सच यही है कि आज का माफिया कल किसी और दल में था और सत्ता बदलते ही अपना रंग बदलकर मौजूदा दल का “आशीर्वाद ” पा गया। भाजपा नेता बताने वाला अंकित अग्रवाल जेल की हवा खा रहा है, लेकिन यह भी उतना ही सच है कि ऐसे माफिया कभी कांग्रेस, कभी भाजपा में शरण पाते रहे हैं। यह राजनीतिक ‘घर बदलू संस्कृति’ ही असली अपराध की जड़ है।
दो मौतें—जिम्मेदार कौन ?
दो गरीब मजदूरों की मौत केवल अंकित अग्रवाल की लालच का नतीजा नहीं है। दोषी कोल प्रबंधन भी है, जो धृतराष्ट्र की तरह आंखें मूंदे बैठा रहा। खदानें बंद करने और गड्ढों को भरने का नियम कोल इंडिया का स्पष्ट निर्देश है, मगर यहां सालों से खामोशी साध ली गई। श्रमिक संगठन भी अपने कर्तव्य से मुकर गए।
सच यही है—इस मौत का जिम्मेदार एक नहीं, बल्कि तीन हैं: राजनीतिक दल, श्रमिक संगठन और खान प्रबंधन।
जनता का आक्रोश और कांग्रेस का ज्ञापन
घटना के विरोध में कांग्रेस पार्टी ने ज्ञापन देकर अवैध कोयला, रेत, जुआ और सट्टे पर तत्काल रोक लगाने की मांग की है। परासिया विधायक सोहन वाल्मीकि और ब्लॉक अध्यक्ष कमल राय ने साफ कहा कि अगर जिम्मेदारों पर कड़ी कार्रवाई नहीं हुई तो जनता का गुस्सा सड़क पर उतरेगा। यह चेतावनी इस बात का संकेत है कि जनता अब और चुप नहीं बैठेगी।
अब नहीं चलेगी ‘ चोरी और सीनाजोरी ’
यह सच है कि कोयला तस्करी के इस खेल में गरीबों को मोहरा बनाया जाता है। रोजगार की कमी के कारण मजबूर युवक मौत की खदानों में धकेले जाते हैं और माफिया करोड़पति बनते हैं। अंकित अग्रवाल जैसे लोगों ने खुद को यमराज बना लिया, जिन्होंने लालच में दो गरीब घरों के चिराग बुझा दिए।
समाप्ति नहीं, शुरुआत हो यह कार्रवाई
एसपी अजय पांडे, थाना प्रभारी राकेश बघेल और उनकी टीम की कार्रवाई काबिल-ए-तारीफ है। मगर सवाल यह है कि क्या यह सिर्फ एक ‘एक्सीडेंटल रेड’ थी या अवैध कोयला साम्राज्य के सफाए की शुरुआत ? अगर दोषियों की गिनती यही छह-सात नामों पर अटक गई तो यह लड़ाई अधूरी रहेगी। पुलिस और प्रशासन को चाहिए कि वे बच्चों की मौत के मामले में खान प्रबंधन के भ्रष्ट अधिकारियों को भी आरोपी बनाएं—तभी दूध का दूध और पानी का पानी होगा।
👉 जनता अब यही कह रही है—“अगर अब भी कार्रवाई अधूरी रही तो खून के आँसू रोते परिवारों की चीखें सत्ता के कानों को हमेशा के लिए बहरी कर देंगी।”