शराब की मंडी और गांधी जयंती की नौटंकी ..

🎯 त्वरित टिप्पणी ..

      ” राकेश प्रजापति “

शराब की लत, तंत्र की मिलीभगत और गांधी जयंती की नौटंकी …

छिंदवाड़ा की गुरैया शराब दुकान पर ड्राय डे के दिन चोरों का धावा और महंगी स्कॉच की चोरी ने यह साबित कर दिया कि मदिरा प्रेमियों की लत इंसान को अपराध की गहराई तक धकेल देती है शराब केवल नशा नहीं, बल्कि वह बीज है जो समाज में अपराध, हिंसा और पतन को जन्म देता है..

लेकिन असली सवाल यह है कि इस अपराध की जड़ में छिपा तंत्र कौन है ? शराब वही है जिसे हम सामाजिक बुराई कहते हैं, लेकिन यही सरकारों का सबसे बड़ा राजस्व स्रोत भी है। आबकारी विभाग और पुलिस तंत्र, दोनों के इस धंधे से पेट पालते हैं। कूचियों में शराब की कालाबाज़ारी और अवैध बिक्री बिना उनकी मिलीभगत के संभव ही नहीं है। सवाल यह उठता है कि तंत्र बार-बार असफल क्यों होता है ? जवाब साफ है—क्योंकि यह असफलता नहीं, बल्कि एक सुनियोजित साझेदारी है।

गांधी जयंती: दिखावा या आत्मसात ? विडंबना देखिए—इसी दिन हम बड़े शान से गांधी जयंती मनाते हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने शराबबंदी को सामाजिक सुधार का बड़ा हथियार बताया था। लेकिन आज वही सरकारें, वही समाज, शराब की लत और व्यापार को पोषित कर रहा है। सवाल उठना लाज़मी है—जब गांधी जी के सिद्धांतों को अपनाने की नीयत ही नहीं है, तो गांधी जयंती मनाने की यह नौटंकी आखिर क्यों ? यह केवल दिखावे का आयोजन है, जो समाज की सामूहिक पाखंड मानसिकता को उजागर करता है।

अगर वास्तव में गांधी को सम्मान देना है, तो उनके विचारों को नीतियों और व्यवस्था में अंगीकृत करना होगा। शराब जैसी बुराई, जो अपराध और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है, उसे राजस्व का जरिया बनाना गांधी के विचारों और नैतिकता के साथ सबसे बड़ा मजाक है।

सभ्य समाज का सपना तब तक अधूरा है जब तक नशे की मंडी को सरकारें अपने खजाने भरने का औजार बनाए रखेंगी। समय आ गया है कि या तो गांधी के नाम पर नौटंकी बंद की जाए , या फिर उनके विचारों को सचमुच आत्मसात किया जाए। अन्यथा यह काली छाया समाज और तंत्र दोनों को अंदर से खोखला करती रहेगी।