ध्वनियों के बिना भाषाई स्वरूप की कल्पना नहीं ..

आंचलिक साहित्यकार परिषद छिंदवाड़ा की पेंशन सदन में पितृ दिवस के अवसर पर काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया जहाँ जिले के मूर्धन्य साहित्यकार कवि और सुधिजन मौजूद थे  ! काव्य गोष्ठी की शुरूआत करते हुए कहा कि ” अज्ञान का अंधेरा, अभिशप्त बनके छाया,  स्वर्णिम प्रभात दे दो, यह कामना करें हम…. 
वरिष्ठ कवि लक्ष्मण प्रसाद डहेरिया ने कहा कि “अपनों के हाथ जहर इतना पी चुका हूं, लगता नहीं है डर, जहरीले नाग से। कवि रमाकांत पांडे ने पाखंड पर करारा प्रहार करते हुए कहा कि ” भक्ति आस्था वाह्य प्रदर्शन, संत बन चुके हैं व्यापारी।” कवयित्री मोहिता जगदेव ने कहा कि “न चांद बनने की ख्वाहिश मुझे, न सूरज बनने की तमन्ना है, जुगनू की मानिंद चमकती रहूं, ताकि वजूद मेरा बरकरार रहे।
काव्य गोष्ठी का मंच संचालन करती हुई कवयित्री प्रीति जैन शक्रवार ने मां की अद्भुत सहनशक्ति पर कहा कि “भूल गई प्रसव पीड़ा, जब देखी तेरी निश्छल मुस्कान, तृप्त हुई कराकर तुझे स्तनपान। नंद किशोर नदीम ने कहा “क्या कहूं कुछ कहा नहीं जाए, बिना कहे भी रहा न जाए।”अंकुर बाल्मीकि ने भ्रष्टाचार पर व्यंग्य कसते हुए कहा कि “फायदे का हिस्सा तो सब उनके हिस्से में जा खड़ा है।” विश्वेश चंदेल ने पिता की महत्ता पर कहा कि” पिता अपने हारे हुए बच्चों को बाजीगर बनाने वाला एक योद्धा है।”
परिषद के सचिव रामलाल सराठे ने ” हम वनबासी वन्य धरा के” शीर्षक से कविता पढ़कर आदिवासियों के प्रति अपनी गहरी संबेदना व्यक्त की। काव्य गोष्ठी में  रत्नाकर रतन,अनुराधा तिवारी, आचार्य शिवेन्द्र कातिल, नेमीचंद व्योम, राजेंद्र यादव, ठाकुर इंद्रजीत सिंह, कविता भार्गव ने भी सरस काव्य पाठ का रसास्वादन किया..