श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 132 वी कड़ी.. 

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता  का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।
इस दिशा में डॉ. बुधौलिया ने स्तुत्य कार्य किया। गीता का छंदमय हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करके वह हिंदी साहित्य को दरअसल एक धरोहर सौंप गए।
आज वह हमारे बीच डॉ. बुधोलिया सशरीर भले नहीं हैं, लेकिन उनकी यह अमर कृति योगों युगों तक हिंदी साहित्य के पाठकों को अनुप्राणित करती रहेगी ! उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 132 वी कड़ी.. 

अठारहवाँ अध्याय : मोक्ष-सन्यास योग

 

तन से मन से अरू वाणी से, करता है कर्म मनुज जो भी,

अनुकूल धर्म के हो अथवा, विपरीत धर्म के रहें सभी।

जुड़ते हैं कारण पाँच उक्त, तब पूर्ण कर्म होने पाता,

यदि हेतु नहीं होते पूरे, तब कर्म अधूरा रह जाता।-15

अतएव अशुद्ध बुद्धिधारी, देता न हेतु की ओर ध्यान,

कर्ता कर्मों का बन जाता, ले लेता स्वयं हेतु स्थान।

झुठलाता रहता सच्चाई, सचमुच होता वह अज्ञानी,

कारण निमित्त या उपादान, उनकी न बातें उसने मानी।-16

 

प्रेरित न दंभ से जो अर्जुन, जिसकी न बुद्धि रे लिप्त रही,

वह चाहे जो भी कार्य करे, हे पार्थ न उसकी गति बिगड़ी।

करके संहार सकल जग का, वह नहीं किसी को मार रहा,

संहार कृत्य अति क्रूर मगर, वह कर्म-बन्ध के पार रहा।-17

 

रे तत्वकर्म के तीन रहे, जो नित्यकर्म प्रेरित करे,

वे ज्ञान ज्ञेय अरू परिज्ञाता, जो कर्मों के पेरक बनते।

एवं जो कर्माधार रहे वे भी है तीन घटक अर्जुन,

इन्द्रियाँ कर्म एवं कर्ता, इनके बारे में आगे सुन।-18

 

त्रिगुणात्मक सारी प्रकृति रही, त्रिगुणों का जग विस्तार रहा,

इनसे भावित है ज्ञान कर्म, कर्ता पर पूर्ण प्रभाव रहा।

हो ज्ञान कर्म अथवा कर्ता प्रत्येक तीन गुण में बँटता,

गुण का निज धर्म रहा अर्जुन, जो धारक को भावित करता।-19    क्रमशः ….