श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 136 वी कड़ी.. 

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता  का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।
इस दिशा में डॉ. बुधौलिया ने स्तुत्य कार्य किया। गीता का छंदमय हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करके वह हिंदी साहित्य को दरअसल एक धरोहर सौंप गए।
आज वह हमारे बीच डॉ. बुधोलिया सशरीर भले नहीं हैं, लेकिन उनकी यह अमर कृति योगों युगों तक हिंदी साहित्य के पाठकों को अनुप्राणित करती रहेगी ! उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 136 वी कड़ी.. 

अठारहवाँ अध्याय : मोक्ष-सन्यास योग

 

अर्जुन वह रही तामसी धृति, उपजाये जो दुर्बुद्धि सदा,

मन प्राण इन्द्रियों सहित मनुज, जिसके कारण तम में उतरा।

जिसके कारण बरबस मानव, भय शोक विषाद किये धारण,

रूचि रखे स्वप्न में निद्रा में, हो मोह विकल जिसके कारण।-35

 

सुख के भी तीन भेद होते हैं, हे भरतर्षभ तू मुझसे सुन,

चर्बित को फिर फिर चबा रहा, सुख बद्धजीव का ऐसा गुन।

प्राकृत बन्धन से मुक्ति हेतु, जन विधि-विधान पालन करता,

संसारी सुख भोगी को यह, आयोजन भला नहीं लगता।-36

 

यह लगता पहिले विष जैसा, कटु लगता लगता दुखदायी,

पर शुद्ध सत्व जब मिल जाता, उसने निधि तब अनुपम पाई।

परिणाम मधुर अमरित जैसा, आनन्द अमित वह पा जाता,

यह सुख है इसका सात्विक सुख, या इसको सब कुछ पा जाता ।-37

 

इन्द्रिय विषयों का सुख सारा, उपभोग तृप्ति से जो मिलता,

होता है क्षणिक उसे पाने, फिर फिर मानव प्रवृत्त होता।

पहिले अमृतवत मधुर लगे, परिणाम मगर विष तुल्य रहे,

ऐसा सुख राजस कहा गया, विषयों का सुख जो मनुज गहे।-38

 

निद्रा में जिसको सुख मिलता, जिसको लगते सुखकर सपने,

डूबा प्रमाद में रहता जो, प्रिय जिसे विकर्म रहे अपने।

कर्तव्य विमुख वह हीनबुद्धि, सुख का पाले रहता है भ्रम,

निद्रा आलस्य प्रमादजन्य, सुख, तामस सुख होता अर्जुन।-39   क्रमशः ….