नवरात्र का पर्व शक्ति की साधना और भक्ति का उत्सव है। नौ दिनों तक माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा की उपासना की जाती है। उनका स्वरूप वीरता, पराक्रम और शांति का प्रतीक है…
माँ चंद्रघंटा का स्वरूप
माँ चंद्रघंटा का नाम उनके मस्तक पर स्थित अर्धचंद्र के आकार की स्वर्णिम घंटा से पड़ा है। उनके माथे पर यह अद्भुत चंद्र के समान आभूषण सदैव शोभायमान रहता है, जो उनके स्वरूप को दिव्य आभा प्रदान करता है।
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माँ के दस हाथ हैं।
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उनके हाथों में विभिन्न अस्त्र-शस्त्र और कमल पुष्प सुशोभित रहते हैं।
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उनका वाहन सिंह है, जो निर्भीकता और शक्ति का प्रतीक है।
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उनका स्वरूप सौम्य होते हुए भी शत्रुओं के लिए अत्यंत उग्र और विनाशकारी है।
पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब असुर महिषासुर ने स्वर्ग और पृथ्वी पर आतंक मचाया, तब देवी ने चंद्रघंटा रूप धारण कर उससे युद्ध किया। इस भीषण संग्राम में माँ ने महिषासुर और उसके अनुचरों का संहार कर धर्म और न्याय की रक्षा की। तभी से उन्हें वीरता की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है।
पूजा का महत्व
नवरात्रि के तीसरे दिन भक्त माँ चंद्रघंटा की विशेष आराधना करते हैं। पूजा के समय माँ की प्रतिमा या चित्र पर हल्दी, सिंदूर, अक्षत और सुगंधित पुष्प अर्पित किए जाते हैं। धूप-दीप प्रज्वलित कर शंख-घंटा बजाना शुभ माना जाता है।
माना जाता है कि इस दिन की पूजा से –
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भय और बाधाएँ दूर होती हैं।
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साधक में साहस और आत्मविश्वास का संचार होता है।
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जीवन में शांति, सुख-समृद्धि और सौहार्द की प्राप्ति होती है।
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अलौकिक अनुभूतियाँ और आध्यात्मिक शक्ति जागृत होती है।
आराधना का फल
माँ चंद्रघंटा की आराधना करने से भक्त को अलौकिक ध्वनियाँ सुनाई देने लगती हैं, जो ईश्वरीय उपस्थिति का आभास कराती हैं। यह देवी साधक के हृदय से भय और नकारात्मकता को नष्ट कर साहस और शांति का वरदान देती हैं। उनके आशीर्वाद से साधक के जीवन में समृद्धि और आत्मबल का संचार होता है।
विशेष महत्व
माँ चंद्रघंटा शांति और पराक्रम का अद्वितीय संगम हैं। उनका पूजन करने से भक्त को जहाँ एक ओर आंतरिक शांति और स्थिरता मिलती है, वहीं दूसरी ओर कठिन से कठिन परिस्थितियों से लड़ने का साहस और शक्ति भी प्राप्त होती है।
🙏 नवरात्रि के तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा की आराधना से साधक को जीवन में भयमुक्ति, आत्मबल और विजय की प्राप्ति होती है