रचित ‘गीताज्ञानप्रभा’ ग्रंथ एक अमूल्य ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा ज्ञानेश्वरीजी महाराज रचित ज्ञानेश्वरी गीता का भावानुवाद किया है, श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को गीता ज्ञान प्रभा में 2868 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है।श्लोक (६८)
गीता के परम रहस्यों को, भक्तों को जो समझायेगा,
यह वचन रहा, वह भक्ति योग, में पारंगत हो जायेगा ।
पायेगा मेरा धाम परम, पायेगा मुक्ति लाभ अर्जुन,
भगवान भक्त के वश में हैं, पर मिलें न वे श्रद्धा के बिन ।
इस परम रहस्य को जो मेरे, भक्तों को प्रमुदित सिखलाता,
मेरे प्रति अपना भक्ति भाव, जो इसको सिखला दिखलाता ।
वह मुझे प्राप्त करता अर्जुन, इसमें कोई संदेह नहीं,
हो चलें अदीक्षित भी दीक्षित, मेरी है सार्थक भक्ति यही ।
सज्जन बन जाए दुष्ट पुरुष, सज्जन को हो उपलब्ध शांति,
जो शांत मनुष्य विमुक्त बने, रह जाए मन में नहीं भ्रांति ।
समभाव जगे, जग सुखी रहे, नश्वरता से अमरत्व वरे,
बन्धनसे पाने मुक्ति, सजग मानव का सतत प्रयास चले ।
श्लोक (६९-७०)
गीता का जो गुणगान करे, अतिशय प्रिय वह सेवक मेरा,
उससे न अधिक प्रिय है कोई, होगा न कभी, यह मत मेरा ।
अरु रही घोषणा यह मेरी, वह ज्ञान-यज्ञ मेरा होगा,
जब पाठ पुनीता गीता का, कोई सुधिजन करता होगा ।
उससे बढ़कर न मनुज कोई, जिसने मेरा प्रिय काम किया,
उससे बढ़कर सारे जग में, प्रिय मुझे न कोई अन्य रहा ।
संवाद पवित्र हमारा यह, इसका अध्ययन करने वाला,
पूजा मेरी करता मानो, वह अपने ज्ञान-यज्ञ द्वारा
श्लोक (७१)
विद्वेष भाव से मुक्त पुरुष, श्रद्धा के साथ सुनेगा जो,
पावन गीता के तत्वों का, मन में भावार्थ गुनेगा जो ।
हो जायेगा वह पाप मुक्त, पायेगा गति पुण्यात्मा की,
हो गए पुरुष जो ब्रह्मभूत, उनमें उसकी होगी गिनती ।
श्लोक (७२)
अब पूछ रहा तुझसे अर्जुन, तूने यह शास्त्र सुना सारा,
एकाग्र चित्त हो एकनिष्ठ, तूने निहितार्थ गुना सारा ।
क्या अभी नहीं अज्ञान मिटा? क्या मोह अभी भी शेष रहा ?
क्या रण-योद्धाओं में अपने, सम्बन्ध पुराने देख रहा ?
एकाग्र चित्त से श्रवण किया, क्या तूने गीता शास्त्र पार्थ ?
क्या इससे मोह मिटा तेरा? बतला मुझको अर्जुन यथार्थ ? क्रमशः….